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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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महावीर स्वामीने उत्तर दिया:-" मुझे उसने कहा कि 'मरो" इससे उसका यह अभिप्राय था कि तुम अब तक इस दुनियामें कैसे हो ? मोक्षमें जाओ। तुम्हें कहा कि जीते रहो' इससे उसका यह अभिप्राय था कि तुम इस शरीरमें रहोगे इसीमें सुख है; क्योंकि मरकर तुम नरकमें जाओगे । अभयकुमारको कहा कि 'जीओ या मरो' इसका यह मतलब था कि अगर तुम जीते रहोगे तो धर्म करोगे और मरोगे तो अनुत्तर विमानमें जाओगे । इससे जीवन, मरण दोनों समान हैं। कालसौकरिकको कहा था कि 'न जी न मर' इससे यह अभिप्राय था कि अगर जीएगा तो पाप करेगा और मरेगा तो. सातव नरकमें जायगा।" राजगृहीसे विहारकर प्रभु पृष्ठचंपा नामक नगरीमें आये।
वहाँका राजा साल और युवसाल राजाको दीक्षा राज महासाल-जो सालका छोटा
भाई था और जिसे राजाने युवराजपद दिया था-दोनों प्रभुको वंदना करने आये और उपदेश पा, वैराग्यवान हो प्रभुके शिष्य हो गये। उन्होंने अपना राज्य अपने भानजे 'गागली' को दिया । गागलीके पिताका नाम पिठर । और माताका नाम 'यशोमती' था ।
पृष्ठचंपासे विहारकर प्रभु चंपानगरी पधारे । वहाँ प्रभुके मुख्य शिष्य गौतम स्वामीने जिन लोगोंको दीक्षा दी थी उन्हें केवलज्ञान हो गया; परंतु गौतम स्वामीको नहीं हुआ। इससे वे दुखी हुए। उन्हें दुखी देख महावीर स्वामीने उन्हें कहा:
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