________________
२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
आपका
'मेरे सिरपर भी स्वामी है। यह बात शालिभद्रको बहुत बरी लगी और वे सब वैभवका त्याग करने लगे । शालिभद्रके बहनोई 'धन्ना' थे । उनको भी यह बात मालूम हुई । उन्हें भी वैराग्य हो आया । फिर जब भगवान महावीर विहार करते हुए वैभारगिरिपर आये। तब शालिभद्र और धन्नाने भगवानके पास जाकर दीक्षा ले ली ।* प्रभु राजगृहीके अंदर समवसरणमें विराजमान थे । उस
___समय एक पुरुष प्रभुके पास आया, रोहिणेय चोरको दीक्षा चरणों में गिरा और बोला:-" नाथ !
आपका उपदेश संमार-सागरमें गोता खाते हुए मनुष्यको पार करनेमें जहाजका काम देता है । धन्य हैं वे पुरुष जो आपकी वाणी श्रद्धापूर्वक मुनते हैं और उसके अनुसार आचरण करते हैं । भगवन् ! मैंने तो एक बार कुछ ही शब्द सुने थे; परंतु उन्होंने भी मुझे बचा लिया है।"
फिर उसने प्रभुसे उपदेश सुना । सुनकर उसे वैराग्य हुआ। उसने पूछा:--" प्रभो ! मैं यतिधर्म पानेके योग्य हूँ या नहीं ? क्योंकि मैंने जीवनभर चोरीका धंधा किया है और अनेक तरहके अनाचार सेवे हैं!"
प्रभु बोले:--" रोहिणेय ! तूम यतिधर्मके योग्य हो ।" फिर रोहिणेय चोर मुनि हो गये। प्रभु महावीरके उपदेशने और धर्मके आचरणने चोरको एक पूज्य पुरुष बना दिया। *इनके विस्तृत चरित्र अगले भागोंमें दिये जायेंगे।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com