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जैन-रत्न
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भगवान विहार करते हुए मरुमंडलके वीतभय नगरमें पधारे।
वहाँके राजा उदायनने प्रभुसे उपराजा उदायन को दीक्षा देश सुन, संसारसे विमुख हो
दीक्षा ग्रहण की। *
प्रभु विहार करते हुए राजगृहीमें पधारे । श्रेणिक अभय
कुमार वगैरा-प्रभुके दर्शनोंको गये । अंतिम राजर्षि कौन होगा? अभयकुमारने-प्रभुसे प्रश्न किया--
___"हे भगवन् ! अंतिम राजर्षि कौन होंगे ?" प्रभुने उत्तर दिया:--" उदायन राजा ।" अभयकुमारको जब यह मालूम हुआ कि, अंतिम राजर्षि
उदायन होगा तब उनके मनमें खलअभयकुमारको दीक्षा * बली मच गई । त्याग और भोमका
द्वंद्व शुरू हुआ। भोग कहता था," राज्य-सम्पत्ति-सुख भोगनेमें पड़ोगे तो तुम्हें फिर कभी त्यागका सुख न मिलेगा राजा बनकर फिर दीक्षा न ले सकोगे।"
धर्मपरायण अभयकुमार राज्यसम्पत्तिसुखके लोभमें न पड़े। उन्होंने अपने पिता श्रेणिकसे आज्ञा लेकर प्रभुके पाससे दीक्षा ले ली।
* इनके विस्तृत चरित्र जैनरत्नके अगले भागोंमें दिये जायेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com