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________________ ४१६ जैन-रत्न ~ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww भगवान विहार करते हुए मरुमंडलके वीतभय नगरमें पधारे। वहाँके राजा उदायनने प्रभुसे उपराजा उदायन को दीक्षा देश सुन, संसारसे विमुख हो दीक्षा ग्रहण की। * प्रभु विहार करते हुए राजगृहीमें पधारे । श्रेणिक अभय कुमार वगैरा-प्रभुके दर्शनोंको गये । अंतिम राजर्षि कौन होगा? अभयकुमारने-प्रभुसे प्रश्न किया-- ___"हे भगवन् ! अंतिम राजर्षि कौन होंगे ?" प्रभुने उत्तर दिया:--" उदायन राजा ।" अभयकुमारको जब यह मालूम हुआ कि, अंतिम राजर्षि उदायन होगा तब उनके मनमें खलअभयकुमारको दीक्षा * बली मच गई । त्याग और भोमका द्वंद्व शुरू हुआ। भोग कहता था," राज्य-सम्पत्ति-सुख भोगनेमें पड़ोगे तो तुम्हें फिर कभी त्यागका सुख न मिलेगा राजा बनकर फिर दीक्षा न ले सकोगे।" धर्मपरायण अभयकुमार राज्यसम्पत्तिसुखके लोभमें न पड़े। उन्होंने अपने पिता श्रेणिकसे आज्ञा लेकर प्रभुके पाससे दीक्षा ले ली। * इनके विस्तृत चरित्र जैनरत्नके अगले भागोंमें दिये जायेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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