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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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घोर तप करनेवाले मुनिके लिए स्वर्ग या मोक्ष कोई स्थान दुर्लभ नहीं है।" यह सुनकर दुर्मुख बोला:-" क्या तुम नहीं जानते कि यह पोतनपुरका राजा प्रसन्नचंद्र है । इसने अपने बालकुमारपर राज्यका भारी बोझा रखकर बहुत बड़ा अपराध किया है । इसके मंत्री चंपानगरीके राजासे मिलकर राजकुमारको राज्यच्युत करनेवाले हैं। इसकी स्त्रियाँ भी न जाने कहाँ चली गई हैं ? जिसके कारण यह अनर्थ हुआ या होनेवाला है उसका तो मुँह देखना भी पाप है।
" दुर्मुखकी बातें सुनकर राजर्षिको क्रोध हो आया और वे अपने मंत्रियों और उनके साथियोंके साथ मन ही मन युद्ध करने लगा। उस समय उनके परिणाम भयंकर थे। उसी समय तुमने पूछा कि वे कौनसी गतिमें जायँगे और मैंने जवाब दिया कि वे सातवें नरकमें जायगे। ____" मगर मनमें युद्ध करते हुए जब उनके सभी हथियार बेकार हुए तब उन्होंने अपने मुकुटसे शत्रुओंपर आघात करना चाहा । जब उन्होंने अपने सिरपर हाथ रक्खा तो उनका सिर उन्हें साफ मालूम हुआ। तुरत उन्हें खयाल आया कि, मैं तो मुनि हूँ। मुझे राज और कुटुंबसे क्या मतलब ? धिक्कार है मेरी ऐसी इच्छाको ! मैं त्याग करके भी पूरा त्यागी न हो सका ! भगवन् ! मैं किस विटंबनामें पड़ा ?" इस तरह अपनी भूलकी आलोचना करने लगे । उसी समय तुमने दूसरी बार पूछा था कि, वे कौनसी गतिमें जायँगे और मैंने
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