________________
४०४
जैन-रन्न
कालधर्म पायेंगे । इस शंकासे वे बहुत दुःखी हुए और तफ करनेके स्थानसे मालुका वनमें जाकर जार जार रोने लगे। :
अन्तर्यामी श्रमण भगवान महावीरने अपने साधुओं द्वारा सिंह मुनिको बुलाया और पूछा:-" हे सिंह ! तुम्हें ध्यानान्तरिकामें मेरे मरनेकी शंका हुई और तुम मालुकावनमें जाकर खुब रोये थे न?" सिंहने उत्तर दिया:-" भगवन् यह बात सत्य है।"
महावीर स्वामी बोले:-" हे सिंह! तुम निश्चिंत रहो । मैं गोशालकके कथनानुसार छः महीनेके अंदर कालधर्मको प्राप्त नहीं होऊँगा । मैं अबसे सोलह बरस तक और गंध हस्तिकी तरह जिनरूपसे, विचरण करूँगा।" सिंहने बड़ी ही नम्रताके साथ निवेदन किया:--" हे
भगवन ! आप और सोलह बरस प्रभुका सिंहके आग्रहसे तक विचरण करेंगे यह सत्य है। औषध लेना परंतु हम लोग आपके इस दुःखको
नहीं देख सकते, इस लिए आप कृपा करके औषधका सेवनकर हमें अनुग्रहीत कीजिए।" __ महावीर स्वामीने कहा:-" हे सिंह ! मेंढिक गाँवमें जाओ। वहाँ रेवती नामकी श्राविका है । उसने मेरे निमित्तसे दो कोहलोंका पाक बनाया है, उसे मत लाना; परंतु अपने लिए मार्जारकृत ( मार्जार नामक वायुको शान्त करनेवाला) बीजोरा पाक बनाया है। उसे ले आना।"
सिंहमुनि रेवतीके मकानपर गये । धर्मलाभ दिया । रेवतीने
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com