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२४ श्री महावीर स्वामी- चरित
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गतिमें गया ? " महावीर स्वामीने उत्तर दिवा: - " गोशालक
अनेक भवभ्रमण
मरकर अच्युत देवलोक में गया है । और करनेके बाद वह मोक्षमें जायगा । "
श्रावस्ती से विहारकर प्रभु मेंटिक ग्राममें
आये और साण
कोष्टक नामके चैत्यमें उतरे । वहाँ सिंह अनगारकी शंका गोशालककी तेजोलेश्याका प्रभाव हुआ | उन्हें रक्त अतिसार और पित्तज्वरकी बीमारी हो गई । वह दिन दिन बढ़ती ही गई । प्रभुने उसका कोई इलाज नहीं किया । लोगों में ऐसी चर्चा आरंभ हो गई कि गोशालकके कथनानुसार महावीर बीमार हुए हैं और छः महीने में वे कालधर्मको प्राप्त करेंगे ।
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महावीरके शिष्य सिंह साणकोष्ठक से थोड़ी ही दूरपर मालुका वनके पास छट्ठ तपकर, ऊँचा हाथ करके ध्यान करते थे । ध्यानान्तरिकामें ' उन्होंने लोगोंकी ये बातें सुनीं । उन्हें यह शंका हो गई कि, महावीर स्वामी सचमुच ही छः महीने में मुझे गुरुद्रोह नहीं करनेकी सलाह दी थी- मारकर मैं हत्यारा बना हूँ । इसलिए मरने के बाद मेरे पैरोंमें रस्सी बाँधना; मुझे सारे शहरमें घसीटना और मेरे पापोंका शहरके लोगोंको ज्ञान कराना । "
महावीर स्वामीपर तेजोलेश्या रक्खी उसके ठीक सातवें दिन गोशालक मरा और उसके शिष्योंने अपने गुरुकी आज्ञाका पालन करनेके लिए, हालाहलाके घरहीमें, उसको पैरसे डोरी बाँधकर घसीटा।
१ - एक ध्यान पूरा होने के बाद जब तक दूसरा ध्यान आरंभ नहीं किया जाता है तब तकका काल ध्यानान्तरिका कहलाता है ।
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