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________________ २४ श्री महावीर स्वामी- चरित ४०३ गतिमें गया ? " महावीर स्वामीने उत्तर दिवा: - " गोशालक अनेक भवभ्रमण मरकर अच्युत देवलोक में गया है । और करनेके बाद वह मोक्षमें जायगा । " श्रावस्ती से विहारकर प्रभु मेंटिक ग्राममें आये और साण कोष्टक नामके चैत्यमें उतरे । वहाँ सिंह अनगारकी शंका गोशालककी तेजोलेश्याका प्रभाव हुआ | उन्हें रक्त अतिसार और पित्तज्वरकी बीमारी हो गई । वह दिन दिन बढ़ती ही गई । प्रभुने उसका कोई इलाज नहीं किया । लोगों में ऐसी चर्चा आरंभ हो गई कि गोशालकके कथनानुसार महावीर बीमार हुए हैं और छः महीने में वे कालधर्मको प्राप्त करेंगे । • महावीरके शिष्य सिंह साणकोष्ठक से थोड़ी ही दूरपर मालुका वनके पास छट्ठ तपकर, ऊँचा हाथ करके ध्यान करते थे । ध्यानान्तरिकामें ' उन्होंने लोगोंकी ये बातें सुनीं । उन्हें यह शंका हो गई कि, महावीर स्वामी सचमुच ही छः महीने में मुझे गुरुद्रोह नहीं करनेकी सलाह दी थी- मारकर मैं हत्यारा बना हूँ । इसलिए मरने के बाद मेरे पैरोंमें रस्सी बाँधना; मुझे सारे शहरमें घसीटना और मेरे पापोंका शहरके लोगोंको ज्ञान कराना । " महावीर स्वामीपर तेजोलेश्या रक्खी उसके ठीक सातवें दिन गोशालक मरा और उसके शिष्योंने अपने गुरुकी आज्ञाका पालन करनेके लिए, हालाहलाके घरहीमें, उसको पैरसे डोरी बाँधकर घसीटा। १ - एक ध्यान पूरा होने के बाद जब तक दूसरा ध्यान आरंभ नहीं किया जाता है तब तकका काल ध्यानान्तरिका कहलाता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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