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२२ श्री नेमिनाथ-चरित
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अपराजितके पूछनेपर विद्याधर बोला:-"मेरा नाम मयकान्त है और इस युवतिका नाम अमृतमाला है। इसने ज्ञानीसे सुना कि, इसका व्याह हरिनंदी राजाके पुत्र अपराजितके साथ होना बदा है तबसे यह उसीके नामकी माला जपती है । मैंने इसे देखा और मेरे साथ ब्याह करनेके लिए इसको उड़ा लाया। मैंने बहुत विनती की; मगर यह न मानी । बोली:-" इस शरीरका मालिक या तो अपराजित ही होगा या फिर अग्निहीसे यह शरीर पवित्र बनेगा।" मेरी बात न मानी इसलिए मैंने इसको अग्निके समर्पण करना स्थिर किया। इसी समय तुम आये और इसकी रक्षा हो गई । "
विमलबोध बोला:-"ये ही हरिनंदीके पुत्र अपराजित हैं। भाग्यमें जो लिखा होता है वह कभी नहीं मिटता ।" उसी समय रत्नमालाके मातापिता भी ढूँढते हुए वहाँ आ गये । उन्होंने यह सारा हाल सुना और वहीं कन्याको अपराजितके साथ ब्याह दिया । अपराजित यह कहकर वहाँसे विदा हुआ कि जब मैं बुलाऊँ तब इसे मेरी राजधानीमें भेज देना ।
वहाँसे चलकर दोनों मित्र एक जंगलमें पहुँचे । धूप तेज थी। प्याससे अपराजितका हलक सूखने लगा। विमलबोध उसको एक झाड़के नीचे बिठाकर पानी लेने गया । वापिस आकर देखता क्या है कि वहाँ अपराजितका पता नहीं है । वह चारों तरफ ढूँढने लगा, परन्तु अपराजितका कहीं पता न चला। बिचारा विमलबोध आक्रंदन करता हुआ इधर उधर भटकने लगा। कई दिन ऐसे ही निकल गये । एक दिन एक गाँवमें
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