________________
जैन - रत्न
तुम्हारी माता के गर्भ से एक पुत्र जन्मेगा; परन्तु जवान होने ' पर वह दीक्षा ले लेगा । "
देवता चला गया । समयपर देवकीजीके गर्भ से एक पुत्र जन्मा । उसका नाम गजसुकुमाल रखा गया । मातापिताके हर्षका ठिकाना न था । दोनोंको कभी बालक खिलानेका सौभाग्य न मिला था । आज वह सौभाग्य पाकर उनके आनंदकी सीमा न रही । लाखोंका दान दिया, सारे कैदियोंको छोड़ दिया और जहाँ किसीको दुखी - दरिद्र पाया उसे निहाल कर दिया ।
२५४
गजसुकुमाल युवा हुए । माता पिताने, उनकी इच्छा न होते हुए भी दो कन्याओं के साथ उनका ब्याह कर दिया । एक राजपुत्री थी। उसका नाम प्रभावती था। दूसरी सोमशर्मा ब्राह्मणकी पुत्री थी । उसका नाम सोमा था। कुछ दिनके बाद नेमिनाथ भगवानका समवशरण द्वारकामें हुआ। सभी यादवोंके साथ गजसुकुमाल भी प्रभुकी वंदना करने गये । देशना सुनकर गजसुकुमालको वैराग्य हो आया और उन्होंने मातापिताकी आज्ञा लेकर प्रभुसे दीक्षा ले ली । उनकी दोनों पत्नियोंने भी स्वामीका अनुसरण किया ।
जिस दिन दीक्षा ली थी उसी रातको गजसुकुमाल मुनि पासके श्मशानमें जाकर ध्यानमग्न हुए । सोमशर्मा किसी काम से बाहर गया हुआ था । उसने लौटते -समय गजसुकुमाल मुनिको देखा । उन्हें देखकर उसे बड़ा क्रोध आया, इस पाखंडीको दीक्षा लेनेकी इच्छा थी तो भी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com