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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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वहाँसे विहार कर प्रभु जुंभक नामक गाँवके पास आये ।
और वहाँ ऋजुपालिका नदीके उत्तर केवलज्ञानकी प्राप्ति तटपर शामाक नामक किसी गृहस्थके
खेतमें, एक जीर्ण चैत्यके पास शालतरुके नीचे छह तप करके रहे और उत्कटिकोसनसे आतापना करने लगे। वहाँ विजय मुहूर्तमें, शुक्ल ध्यानमें लीन महावीर स्वामी क्षपक श्रेणीमें आरूढ हुए और उनके चार घाति काँका नाश हो गया। वि० सं०५०१ (ई. सन ५०८) पूर्व वैशाख सुदि १० के दिन चंद्र जब हस्तोत्तरा नक्षत्रमें आया था दिनके चौथे पहरमें महावीर स्वामीको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । इन्द्रादि देवोंने आकर केवल-ज्ञान-कल्याणक मनाया । यहाँ समवशरणमें बैठकर प्रभुने देशना दी; परंतु वहाँ कोई विरति परिणामवाला न हुआ। यानी किसीने भी व्रत अंगीकार नहीं किया । देशना निष्फल गई । तीर्थकरोंकी देशना कभी निष्फल नहीं जाती परंतु महावीर स्वामीकी यह पहली देशना निष्फल गई । शास्त्रकारोंने इसे एक आश्चर्य माना है।
१ बंगालमें पारसनाथ हिलके पास इस नामकी एक नदी है ।
२ मनुष्य जैसे गाय दुहने बैठता है वैसे बैठकर ध्यान करनेको उत्कटिकासन कहते हैं।
१ शास्त्रों में ऐसे दस आश्चर्य माने गये हैं । वे इस प्रकार हैं।
(१) तीर्थकर केवलीका पीडा-एक बार विहार करते हुए वीर प्रभु श्रावस्ती नगरी में समोसरे । उसी समय गोशालक भी वहाँ आया। वह कहता था-"मैं जिन हूँ।" महावीर स्वामीको गौतम गणधरने पूछा:
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