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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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समवशरणमें आये। प्रभुकी देशनासे वैराग्यवान होकर जमालीने पाँच सौ अन्य क्षत्रियों सहित दीक्षा ले ली। ___ + जमाली महावीरके भानजे थे । इन्हीं के साथ महावीरकी पुत्री प्रियदर्शना ब्याही गई थी। जमालीने दीक्षा लेनेके बाद ग्यारह अंगोंका अध्ययन किया । तब प्रभुने उन्हें हजार क्षत्रिय मुनियोंका आचार्य बना दिया । वे छ? अट्टम आदिका तप करने लगे।
एक बार जमालीने अपने मुनिमंडल सहित, स्वतंत्ररूपसे विहार करनेकी आज्ञा माँगी । प्रभुने अनिष्टकी संभावनासे मौन धारण किया । जमाली मौनको सम्मति समझकर विहार कर गये । विहार करते हुए वे श्रावस्ती नगरी पहुँचे । नगरके बाहर 'तेंदुक' नामक उद्यानके 'कोष्ठक' नामक चैत्यमें रहे । विरस, शीतल, रुक्ष और असमय आहार करनेसे उन्हें पित्तज्वर आने लगा । एक दिन ज्वरकी अधिकताके कारण उन्होंने सो रहनेके लिए संथारा करनेकी अपने शिष्योंको आज्ञा दी । थोड़े क्षण नहीं बीते थे कि, जमालीने पूछाः-" संथारा बिछा दिया ?" शिष्य बोले:-" बिछा दिया।" ज्वरात जमाली तुरत जहाँ संथारा होता था वहाँ आये । मगर संथारा होते देखकर वे बैठ गये
और बोले:-" साधुओ ! आज तक हम भूले हुए थे। इस लिए असमाप्त कार्यको भी समाप्त हो गया कहते थे। यह भूल थी । जो काम समाप्त हो गया हो उसके लिए कहना चाहिए कि, हो गया । जिसको तुम कर रहे हो उसके लिए कभी मत कहो कि, वह हो गया है । तुमने कहा कि 'संथारा बिछ गया है।' वस्तुतः यह बिछ नहीं चुका था । इस लिए तुम्हारा यह कहना असत्य है । उत्पन्न होता हो उसे उत्पन्न हुआ कहना, और जो अभी किया जाता हो उसके लिए हो चुका कहना, ऐसा महावीर कहते हैं वह, अयोग्य है। कारण इसमें प्रत्यक्ष विरोघ मालूम होता है। वर्तमान और भविष्य क्षणोंके समूहके योगसे
जो कार्य हो रहा है उसके लिए 'हो चुका' कैसे कहा जा सकता है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com