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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३९३ साथ दीक्षा ले ली । ( भगवती सूत्रमें और विशेषावश्यक सूत्रमें इनका नाम प्रियदर्शना, ज्येष्ठा और अनवद्योगी भी लिखा है । ) एक बार विहार करते हुए महावीर स्वामी कोशांबी आये ।
उस समय कोशांबीको घेरकर महावीरके प्रभावसे शत्रुओंमें मेल उज्जयनीका राजा चंडप्रद्योत
__ पड़ा हुआ था । महावीरके कोशांबीमें आनेके समाचार सुन कोशांबीकी महारानी
एक बार जमाली फिरते हुए श्रावस्तीमें गये । प्रियदर्शना भी वहीं 'ढंक' नामक कुम्हारकी जगहमें अपनी एक हजार साध्वियोंके साथ उतरी थीं । ढंक श्रद्धावान श्रावक था। उसने प्रियदर्शनाको जैनमतमें लानेका निश्चय किया । एक दिन उसने प्रियदर्शनाके वस्त्रपर अंगारा डाल दिया । प्रियदर्शना बोली:-" ढंक ! तुमने मेरा वस्त्र जला दिया।"
ढंक बोला:-“मैं आपकी मान्यताके अनुसार कहता हूँ कि आप मिथ्या बोलती हैं । कपड़ाका जरासा भाग जला है । इसे आप कपड़ा जला दिया कहती हैं । यह आपके सिद्धांतके विरुद्ध है। आप जलते हुएको जल गया नहीं कहतीं । ऐसा तो महावीर स्वामी कहते हैं।"
प्रियदर्शना बुद्धिमान थीं। उन्हें अपनी भूल मालूम हुई। उन्होंने महावीरस्वामीके पास जाकर प्रायश्चित्त कर पुनः शुद्ध सम्यक्त्व धारण किया ।
जमाली अंत तक अपने नवीन मतकी प्ररूपणा करते रहे । इनके मतका नाम 'बहुरत वाद , था। इसका अभिप्राय यह है कि होते हुए कामको हुआ ऐसा न कहकर संपूर्ण हो चुकनेपर ही हुआ कहना। [ इस संबंधमें विशेष जाननेके लिए विशेषावश्यक सूत्रमें गाथा २३०६ से २३३३ तक और भगवती सूत्रके नवें शतकके
३३ वें उद्देशकमें देखना चाहिए । ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com