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जैन-रत्न ~wwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm मृगावतीने प्रभुसे दीक्षा ली। उसके साथ ही चंडप्रद्योतकी आठ स्त्रियोंने भी दीक्षा ली । वे सब महासती चंदनाके पास रहीं । पाँच सौ चोर एक जंगलमें किला बनाकर रहते थे और
चोरी व लूटका धंधा करते थे । ५०० चोरोंके सर्दारको एक बार उन चोरोंका सर्दार कोदीक्षा देना शांबीमें भगवान महावीरके समवश
रणमें गया । वहाँ भगवानकी देशना सुनकर उसे वैराग्य हुआ और उसने दीक्षा ले ली। फिर वह वहाँसे चोरोंके पास गया और उन चोरोंको भी, उपदेश देकर, दीक्षा दे दी।
विषयांध चंडप्रद्योत इस जालमें फँस गया और उसने कोशांबीके चारों तरफ पक्का कोट बनवा दिया। जब कोट बनकर तैयार हो गया तब मृगावतीने चारों तरफके दर्वाजे बंद करवा दिये और दीवारोंपर अपने सुभट चढ़वा दिये।
अब चंडप्रद्योतकी आँखें खुली; परंतु कोई उपाय नहीं था । वह शहरको घेरकर पड़ा रहा । कई महीने बीत गये।
भगवान महावीर विहार करते हुए कोशांबीमें समोसरे । प्रभुका आगमन सुनकर मृगावती अपने परिवार सहित समवशरणमें गई । चंडप्रद्योत भी समवशरणमें गया। प्रभुके दर्शनकरके और उनकी देशना सुनकर उसके वैर और काम शांत हो गये।
मृगावतीने अवसर देख अपना पुत्र उदयन चंडप्रद्योतको सौंपा । और भगवान महावीरसे दीक्षा ली । कोशांबीका नाश करने पर तुला हुआ चंडप्रद्योत, मृगावतीकी युक्तिसे असफल हुआ और महावीरके प्रभावसे वैर भूलकर कौशांबीका रक्षक बन गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com