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जैन-रत्न
मृगावतीने निर्भय होकर किलेके फाटक खोल दिये और वह अपने परिवार सहित समवशरणमें गई । राजा चंडप्रद्योत भी प्रभुकी देशना सुनने गया । देशनाके अंतमें राणी मृगावतीने उठकर अपना पुत्र उदयन चंडप्रद्योतको सौंपा और कहा:“इसकी आप अपने पुत्रके समान रक्षा करें और मुझे दीक्षा लेनेकी आज्ञा दें । मैं इस संसारसे उदास हूँ।*
* मृगावती कोशांबीके राजा शतानीककी पत्नी थी । जैनधर्ममें उसकी पूर्ण श्रद्धा थी । एक बार राजा शतानीकने सुंदर चित्रशाला बनवाई । एक चित्रकार चित्रकारोंमें किसी यक्षकी कृपासे ऐसा होशियार था कि किसी भी व्यक्निके शरीरका कोई अंग देखकर उसका सारा चित्र बना देता था । चित्रशालामें चित्र बनाते समय उसे अचानक मृगावती रानीके पैरका अंगूठा दिख गया। इससे उसने रानीका पूरा चित्र बना डाला। चित्र बनाते वक्त चित्रकी जाँघपर पीछीसे काले रंगकी बूंद, गिर पड़ी। चित्रकारने उसे मिटा दी। दूसरी बार और गिरी जब तीसरी बार भी गिरी तब उसने सोचा, इसकी यहाँ आवश्यकता होगी। उसने वह काला दाग न मिटाया । दाग जाँघपर काला तिल हो गया।
राजा शतानीक, चित्रशाला, तैयार होनेपर, देखने आया । वहाँ उसने मृगावतीका चित्र जाँघके तिल सहित हू बहू देखा । इससे उसे चित्रकार और रानीके चरित्रपर वहम हुआ। उसने नाराज होकर चित्रकारको कतल करनेकी आज्ञा दी । दूसरे चित्रकारोंने राजासे प्रार्थना की:-" महाराज! एक यक्षकी महरबानीसे यह किसी भी मनुष्यका, एक भाग देखकर, हू बहू चित्र बना सकता है । यह निरपराधी है।" राजाने इसकी परीक्षा करनेके लिए किसी कुबड़ीका मुँह बताया । चित्रकारने उसका हू बहू चित्र बना दिया। इससे राजाकी शंका
जाती रही । मगर राजाने यह विचार कर उसके दाहिने हाथका अंगूठा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com