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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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लिया है कि सब शून्य है-कुछ नहीं है । यह तुम्हारी भ्रांति है । असलमें इसका अभिप्राय यह है कि, जैसे सपनेके अंदर की बातें व्यर्थ होती हैं । इसी तरह इस दुनियाका सुख भी व्यर्थ होता है। यह सोचकर मनुष्यको आत्मध्यानमें लीन होना चाहिए।" .
व्यक्तका संशय मिट गया और उनने भी अपने ५०० शिष्यों सहित महावीर स्वामीके पास दीक्षा ले ली। .
व्यक्तके समाचार सुनकर उपाध्याय सुधर्मा भी महावीर स्वापीके पास गये । प्रभुने उनको कहा:- "हे सुधर्मा ! तुम्हारे मनमें परलोकके विषयमें शंका है । तुम्हारी धारण है कि जैसे गेहूँ खादमें मिलकर गेहूँरूपमें और चावल खादमें मिलकर चावल रूपमे पैदा होता है वैसे ही मनुष्य भी मरकर मनुष्यरूपहीमें जन्मता है; परंतु यह तुम्हारी धारणा भूलभरी है। मनुष्य योग और कषायके कारण विविधरूप धारण करता है । वह जिस तरहकी भावनाओंसे प्रेरित होकर आचरण करता है वैसा ही जन्म उसे मिलता है । यदि वह सरलता और मृदुताका जीवन बिताता है तो वह फिरसे मनुष्य होता है, यदि वह कटुता और वक्रताका जीवन बिताता है तो वह पशुरूपमें जन्मता है और यदि उसका जीवन परोपकार परायण होता है तो वह देव बनता है।"
१ इनके पिताका नाम धम्मिल और माताका नाम भद्रिला था। अग्निवैश्यायन गोत्रके ये ब्राह्मण थे और कोल्लाक गाँवके रहनेवाले थे। इनकी उम्र १०० बरसकी थी। ये ५० बरस तक गृहस्थ ४२ बरस तक छद्मस्थ साधु और ८ बरस तक केवली रहे ।
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