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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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इन्द्रभूतिके छोटे अग्निभूतिने सुना कि इन्द्रभूति महावीरका शिष्य हो गया है तो उसे बड़ा क्रोध आया। वह भी अपने पाँच सौ शिष्योंको साथ ले महावीरको परास्त करने गया। मगर समवसरणमें पहुँचनेपर उसका दिमाग भी ठंडा हो गया । महावीर बोले:-“हे अग्निभूति ! तुम्हारे मनमें शंका है कि कर्म है या नहीं ?" अगर कर्म हो तो वह प्रत्यक्षादि प्रमाणसे अगम्य और मूर्तिमान है । जीव अमूर्त है । अमूर्त जीव मूर्तिमान कर्मको कैसे बाँध सकता है ?"
तुम्हारी यह शंका निर्मूल है । कारण,-अतिशय ज्ञानी पुरुष तो कर्मकी सत्ता प्रत्यक्ष जान सकते हैं, परंतु तुम्हारे समान छद्मस्थ भी अनुमानसे इसे जान सकते हैं । कर्मकी विचित्रतासे ही संसारमें असमानता है। कोई धनी है और कोई गरीब; कोई राजा है और कोई रैयत; कोई मालिक है
और कोई नौकर; कोई नीरोग है और कोई नौकर । इस असमानताका कारण एक कर्म ही है । ___ अग्निभूतिके हृदयकी शंका मिट गई और वे भी अपने ५०० शिष्यों के साथ महावीरके शिष्य हो गये ।
'मेरे दोनों भाइयोंको हरानेवाला अवश्य सर्वज्ञ होगा' यह सोच, वायुभूति शांत मनके साथ अपने शिष्योंके साथ समवसरणमें गया और प्रभुको नमस्कार कर बैठा । महावीर बोले:- "हे वायुभूति ! तुम्हें जीव और शरीरके संबंध भ्रम है । प्रत्यक्षादि प्रमाण जिसे ग्रहण नहीं कर सकते वह
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