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जैन-रत्न
“क्या यह जिन है ?" महावीरने कहा:-“ नहीं। वह मंखका पुत्र है। मेरेपास छः बरसतक मेरे शिष्यकी तरह रहकर बहुश्रुत हुआ है।" गोशालकको यह बात मालूम हुई । इससे नाराज होकर उसने महावीर पर तेजोलेश्या रक्खी। इससे महावीरको छः महीने तक कष्ट उठाना पड़ा। तीर्थकरोंको केवली होनेके बाद कभी कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ता परंतु महावीरको उठाना पड़ा यह एक आश्चर्य हुआ।
(२) गर्भ हरण-पहले किन्हीं जिनेश्वरका गर्भ संक्रमण नहीं हुआ; परंतु महावीरका हुआ । यह दूसरा आश्चर्य है।
(३) स्त्री तीर्थकर तीर्थकर हमेशा पुरुष ही होते है; परंतु मल्लि. नाथजी स्त्री तीर्थकर हुए । यह तीसरा आश्चर्य है।।
(४) निष्फल देशना-तीर्थकरोंका उपदेश कभी निष्फल नहीं जाता । मगर महावीर स्वामीका गया । यह चौथा आश्चर्य है।
(५) दो वासुदेवोंका मिलना-एक बार नारद पांडवोंकी भावी पत्नी द्रौपदीके पास मिलने चले गये । नारदका द्रौपदीने सम्मान नहीं किया। इससे नाराज होकर धातकी खंडके अपर कंकाके राजा पद्मोत्तरको द्रौपदीके रूपका वर्णन सुनाया । पद्मोत्तर देवकी सहायतासे सोती हुई द्रौपदीको उठा ले गया । कृष्णको यह बात मालूम हुई । वे पांडवों सहित गये और पद्मोत्तरको हराकर द्रौपदीको ले आये। लौटते समय उन्होंने शंखनाद किया । वहाँ कपिल वासुदेव था। उसने भी समुद्र किनारे आकर शंखनाद किया । इस तरह दो वासुदेव एक स्थानपर एकत्र हुए। यह पाँचवाँ आश्चर्य है।
(६) सूर्य और चंद्रका आना-श्रावस्ती नगरी में सूरज और चाँद अपने मूल विमानों सहित महावीरके दर्शन करने आये थे । यह छठा आश्चर्य है।
(७) युगलियोंका इस क्षेत्रमें आना-कौशांबीका राजा वीरक नामके जुलाहेकी वनमाला नामकी सुंदर स्त्रीको उठा ले गया। जुलाहा दुःख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com