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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३७३ ११-कर्मरूपी शत्रुओंके लिए वे गजराज थे ।
१२-स्वीकृत महाव्रतके भारको वहन करनेके लिए वे वृषभकी तरह पराक्रमी थे।
१३-परिसहादि पशुओंके लिए वे दुर्धर्ष सिंह थे । १४-अंगीकार किये हुए तप और संयममें दृढ रहनेसे और उपसर्गरूपी झंझावातसे भी चलित न होनेसे वे निश्चल सुमेरु थे।
१५-हर्ष और विषादके कारण प्राप्त होते हुए भी विकारहीन होनेसे वे गंभीर सागर थे ।
१६-हरेकके अन्तःकरणको शांतिप्रदान करनेवाली भावनावाले होनेसे वे सौम्य चंद्रमा थे।
१७-द्रव्यसे शरीरकी कांतिद्वारा और भावसे उज्ज्वल भावनाद्वारा देदीप्यमान होनेसे वे प्रखर सूर्य थे ।
१८-कर्ममलके नष्ट हो जानेसे वे निर्मल स्वर्ण थे ।
१९-शीत उष्णादि सभी प्रतिकूल और अनुकूल परिसहोंको सहन करनेसे वे क्षमाशील पृथ्वी थे ।
२०-ज्ञान और तपरूपी ज्वालासे प्रदीप्त वे जाज्वल्यमान अग्नि थे। ___ महावीर स्वामीने दीक्षा ली उसके बाद वे बारह वर्ष छः महीने और एक पक्ष तक यानी ४५१५ दिन तक छद्मस्थ रहे। इतने समयमें उन्होंने ३५१ तप किये, ४१६५ दिन निराहार रहे और ३५० दिन अन्न जल ग्रहण किया । उनका ब्योरा इम नीचे देते हैं।
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