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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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आकर पूजा करते हैं, वे कुछ ज्ञान जरूर रखते होंगे । इसलिए उसने आकर प्रभुसे जीवके संबंध प्रश्न किये और संतोषप्रद उत्तर पाकर स्वातिदत्त प्रभुका भक्त बन गया। चंपानगरीसे विहारकर प्रभु जुंभक, मेढक गाँव होते हुए
षण्मानि गाँव आये । वहाँ गाँवके कानोंमें कीलें ठोकनेका बाहर कायोत्सर्ग करके रहे । उस उपसर्ग। समय, वासुदेवके भवमें शय्यापालक
के कानमें तपाया हुआ शीशा डालकर जो असाता वेदनीय कर्म उपार्जन किया था वह उदयमें आया । शय्यापालकका वह जीव इसी गाँवमें गवाल हुआ था। वह उस दिन प्रभुके पास बैलोको छोड़कर गायें दोहने गया । महावीर तो ध्यानमें लीन थे। वे कहाँ बैलोंकी रखवाली करते ? बैल जंगलमें निकल गये । गवालने वापिस आकर पूछा:-" मेरे बैल कहाँ हैं ?" कोई जवाब नहीं । " अरे क्या बहरा हैं ? " कोई जवाब नहीं । " अरे अधम ! कान हैं या फूट गये हैं ? " कोई जवाब नहीं । " ठहर मैं तुझे बराबर बहरा बना देता हूँ।" कहकर वह गया और 'शरकट' की मूखी लकड़ी काटकर लाया । उसको छीलकर बारीक कीलें बनाई और फिर उन्हें महावीर स्वामीके दोनों कानोंमें ठोक दीं । परंतु क्षमाके धारक महावीरने उसपर जरासा भी क्रोध न किया । वे इस तरह आत्मध्यानमें लीन रहे मानों कुछ हुआ ही नहीं है । कानोंसे बाहर निकला हुआ जो भाग था
१ इससे तीर बनते है !
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