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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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हुई एक पैर दहेलीजके अंदर और एक बाहर रखे हुए मुझे आहार देनेको तैयार हो उसीसे मैं आहार लूँगा। आहारके लिए फिरते हुए करीब छः महीने गुजर गये तब प्रभुके अन्तराय कर्मके बंधन टूटे और धनावाह सेठके घर प्रभुका अभिग्रह पूरा हुआ। उन्होंने बिना आहार छः महीनेमें पाँच दिन रहे तब ज्येष्ठ सुदि ११ के दिन, उड़दके बाकलोंसे पारणा किया । देवताओंने वसुधारादि पंच दिव्य प्रकट किये ।
१-यह मिति पोस वदि १ से छः महीनेमें पाँच दिन कम यानी पाँच महीने और दस दिनकी गिन्ती कर लिखी गई है। ___२-चंपा नगरीमें दधिवाहन राजा था। उसकी राणी धारिणीकी कोखसे एक रूपवान और गुणवती कन्या जन्मी । उसका नाम वसुमति रक्खा गया । कोशांबीका राजा शतानीक था । उसकी रानी मृगावती पूर्ण धर्मात्मा थी। एक बार किसी कारणसे शतानीकने चंपा नगरीपर चढ़ाई की। दधिवाहन हार गया । शहर लूटा गया । राणी धारिणी और उसकी कन्या वसुमतीको एक सैनिक पकड़ ले गया। रास्तेमें सैनिककी कुदृष्टि धारिणीपर पड़ी। धारिणीने प्राण देकर अपनी आबरू बचाई । वसुमती कोशांबीमें बेची गई । धनावाह सेठ उसको खरीदकर अपने घर ले गया । उसे पुत्रीकी तरह पालनेकी अपनी सेठानीको हिदायत की । वसुमतीकी वाणी चंदनके समान शीतलता उत्पन्न करनेवाली थी। इससे सेठने उसका नाम चंदनबाला रक्खा । इसी नामसे वह संसार में प्रसिद्ध हुई । जब चंदनबाला बड़ी हुई, यौवनका विकास हुआ, सौन्दर्यसे उसकी देह कुंदनी चमकने लगी तब मूलाको ईर्ष्या हुई । सेठका चंदनबालापर विशेष हेत देखकर उसे वहम भी हुआ । उसने एक दिन, जब धनावाह कहीं चला गया था,, चंदनबालाको पकड़कर उसका सिर मुंडवा दिया और उसके पैरोंमें बेडी डालकर उसे गुप्त स्थानमें कैद कर दिया । धनावाहने वापिस आया तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com