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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
ब्राह्मण वापिस महावीर स्वामीके पास गया। उनके साथ साथ वह तेरह महीने तक फिरा । बादमें एक दिन प्रभु जब मोराक गाँवसे उत्तर चाँवाल नामके गाँवको जाते थे तब रस्तेमें 'सुर्वणवालुका ' नामकी नदीके किनारे झाड़ोंमें उनका आधा देवदूष्य वस्त्र फँस गया । ब्राह्मणने तुरत दौड़कर वह वस्त्र उठा लिया । प्रभुने पीछे फिरकर देखा और ब्राह्मणको वस्त्र उठाते देख आगेका रस्ता लिया । ब्राह्मण वह वस्त्रार्द्ध लेकर तूननेवालेके पास गया । तूननेवालेने दोनों टुकड़ोंको बेमालूम तूना और तब एक लाख दीनारमें उस वस्त्रको बेच दिया । ब्राह्मण और तूननेवाला दोनोंने पचास पचास हजार दीनार ले लिये । प्रभु दीक्षा लेकर पहले दिन कुमार गाँवमें पहुँचे । वहाँ
गाँवके बाहर कायोत्सर्ग गवाल-कृत उपसर्ग एक गवाला शामको वहाँ आया और
अपने बेलोंको वहीं छोड़कर गाँवमें गायें दुहने चला गया। बैल फिरते हुए कहीं जंगलमें चले गये । जब गवाला वापिस आया तब वहाँ बैल नहीं थे। उसने महावीर स्वामीसे बैलोंके लिए पूछा; परंतु ध्यानस्थ वीरसे उसे कोई जवाब न मिला। वह बैलोंको ढूँढने जंगलमें गया । सारी रात ढूँढता रहा; मगर उसे कहीं बैल न मिले । बिचारा हारकर वापिस आया तो क्या देखता है कि बैल महावीर स्वामीके
१ क्षत्रियकुंड अथवा वैशालीसे नालंदा जाते समय रस्तमें लगभग १७-१८ माइल पर एक कुस्मर नामका गाँव है । संभवतः यही गाँव पहले 'कुर्मार' नामसे प्रसिद्ध हो । ( दश उपासको पेज ३६)
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