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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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करनेकी प्रार्थना की । प्रभुने वह प्रार्थना स्वीकारी। अनेक स्थलोंमें विहारकर चातुर्मासके आरंभमें प्रभु मोराक गाँवमें आये । कुलपतिने प्रभुको घासफूसकी एक झोंपड़ीमें ठहराया। ___ जंगलोंमें घासका अभाव हो गया था और वर्षासे नवीन घास अभी उगी न थी। इसलिए जंगलमें चरने जानेवाले ढोर जहाँ घास देखते वहीं दौड़ जाते । कई ढोर तापसोंके आश्रमकी ओर दौड़ पड़े और उनकी झोंपड़ियोंका घास खाने लगे । तापस अपनी झोंपड़ियोंकी रक्षा करनेके लिए डंडे ले लेकर पिल पड़े । ढोर सब भाग गये।
जिस झौंपड़ीमें महावीर स्वामी रहते थे, उस तरफ कुछ ढोर गये और घास खाने लगे। प्रभु तो निःस्वार्थ, परहित परा यण थे । भला वे ढोरोंके हितमें क्यों बाधा डालने लगे १ वे अपने आत्मध्यानमें लीन रहे और ढोरोंने उनकी झौंषडीकी घास खाकर आत्मतोष किया । तापस महावीर स्वामीकी इस कृतिको आलस्य और दंभपूर्ण समझने लगे और मन ही मन क्रुद्ध भी हुए । कुछ तापसोंने जाकर कुलपतिको कहाः" आप कैसे अतिथिको लाये हैं ? वह तो अकृतज्ञ, उदासीन, दाक्षिण्यहीन और आलसी है । झोंपड़ीकी घास ढोर खा गये हैं और वह चुपचाप बैठा देखता रहा है। क्या वह अपनेको निर्मोही मुनि समझ चुप बैठा है ? और क्या हम गुरुकी सेवा करनेवाले मुनि नहीं हैं ? "
तापसोंकी शिकायत सुन कुलपति महाबीर स्वामीके पास
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