________________
३५०
जैन-रत्न
दिया:--" हे भद्र! यह पौदा फलेगा और दूसरे सात फूलोंके जीव हैं वे इस पौदेकी फलीमें सात तिलरूपमें जन्मेंगे।" गोशालकने महावीर स्वामीकी वाणीको मिथ्या करनेके लिए उस पौदेको उखाड़कर दूसरी जगह रख दिया । उसी समय किसी देवताने महावीरकी वाणी सत्य करनेके लिए पानी बरसायो । महावीरस्वामी और गोशालक कूर्मग्राम चले गये । तिलका पौदा किसी गायके पैरसे जमीनमें घुस गया और धीरे धीरे वह पुनः पौदेके रूपमें आया और उसकी फलीमें सातों पुष्पोंके जीव तिल रूपमें उत्पन्न हुए । कूर्मग्रामसे विहारकर प्रभु जब वापिस सिद्धार्थपुर चले तब रस्तेमें तिलके पौदेवाली जगह
आई । वहाँ गोशालकने कहा:-"प्रभु, आपने कहा था कि तिलका पौदा फिर उगेगा और फूलोंके सात तिळ होंगे; मगर ऐसा तो नहीं हुआ।" महावीर बोले:-" हुआ है।" तब गोशालकने पौदा जाकर देखा और उसकी फली तोड़ी तो उसमेंसे सात तिल निकले । तब गोशालकने परिवर्तवादके सिद्धांतको स्थिर किया।
१-अबतकके सब प्रश्नोंका जवाब सिद्धार्थ देवने दिया था । इस प्रश्नका उत्तर स्वयं महावीरने दिया।
२ भगवती सूत्रमें और आवश्यक सूत्रमें “किसी देवताने पानी बरसाया " ऐसा उल्लेख नहीं है । उनमें उसी समय पानी बरसना लिखा है ।
३-जिस शरीरसे जीव मरता हैं पुनः उसीमें उत्पन्न होता है। इस तरहके सिद्धांतको परिवर्तवाद कहते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com