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जैन-रत्न
भाववाला भी था । धूपकी तेजीके कारण बीच बीचमें उसके सिरसे जूएँ खिर पड़ती थीं, उन्हें उठाकर वह वापिस अपने सिरमें रख लेता था । कौतुकी गोशालकने जाकर उसे कहा:-" हे तापस ! तू मुनि है, या मुनीक (पागल ) है या जूओंका पलंग है ? " तापस कुछ न बोला । इससे दूसरी, तीसरी और चौथी बार गोशालकने यही बात तापसको कही। अंतमें तापसको क्रोध आया और उसने गोशालकपर तेजोलेश्या रक्खी । महावीरने दया करके उसको शीत लेश्यासे बचा लिया।
गोशालकने पूछा:-" भगवन् ! तेजो लेश्या कैसे प्राप्त होती है ?" महावीर स्वामीने उत्तर दियाः-" हे गोशालक ! जो मनुष्य नियम करके छट्टका तप करता है और एक मुट्ठी उड़दके बाकले और एक चुल्लू जलसे पारणा करता है। इस तरह जो छः महीने तक लगातार छटुका तप करता है, उसे तेजो लेश्याकी लब्धि प्राप्त होती है।" __ कूर्मग्रामसे विहारकर प्रभु सिद्धार्थपुर आये । गोशालक यहाँसे तेजोलेश्या प्राप्त करनेको तप करनेके लिए श्रावस्ती नगरी चला गया। ___ महावीर स्वामी सिद्धार्थपुरसे विहार कर वैशाली आये । यहाँ सिद्धार्थ क्षत्रियके मित्र शंख गणराजने सपरिवार आकर प्रभुकी वंदना की। __ वैशालीसे विहारकर महावीर स्वामी वाणीजक गाँवको चले। रस्तेमें मंडिकीका नामकी एक नदी आती है । उसे एक
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