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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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नौकामें बैठकर पार किया । उतरते समय उसने आपसे किराया माँगा। प्रभुके पास किराया कहाँ था? इसलिए नाविकने उन्हें रोक रक्खा । शंख गणराजके भानजे चित्रने आपको छुड़ाया । आप वाणीजक गाँवमें पहुँचे ।।
वहाँ आनंद नामक एक श्रावक रहता था। वह नियमित छह तप करता था और उत्कृष्ट श्रावकधर्म पालता था। इससे उसको अवधिज्ञान हो गया था। उसने आकर प्रभुकी वंदनास्तुति की। ___ वाणिजक गाँवसे विहार कर प्रभु श्रावस्ती नगरीमें आये श्रावस्ती नगरी में दसवाँ चौमासा और वि० सं० ५०४ ( ई. म.
" ५६१ ) पूर्वका चातुर्मास वहीं बिताया।
चातुर्मास पूरा होनेपर प्रभु सा यष्टिक गाँव आये। वहाँ भद्रा, महाभद्रा और सर्वतोभद्रा नामक प्रतिमाएँ अंगीकार की। और
१-विशेषावश्यकमें इस गाँवका नाम सानुलष्ठ लिखा है। २-इन प्रतिमाओंको अंगीकार करनेकी विधि यह है-(१)भद्रा-छट्टका तप करे, एक पुद्गलपर दृष्टि स्थिर करे। पहले दिन दिनभर पूर्वकी तरफ मुँह रक्खे, पहली रात रातभर दक्षिणकी तरफ मुँह रक्खे दूसरे दिन दिनभर पश्चिमकी तरफ मुख रक्खे और दूसरी रात रातभर उत्तरकी तरफ मुख रक्खे । (२) महा भद्रा-इसमें दशम तप (चार उपवास) करे । एक पुद्गलपर नजर रक्खे । पहले दिन दिनरात पूर्वकी तरफ मुँह रक्खे, दूसरे दिन दिनरात दक्षिणकी तरफ मुँह रक्खे, तीसरे दिन दिनरात पश्चिमकी तरफ मुँह रक्खे और चौथे दिन दिनरात उत्तरकी तरफ मुंह रक्खे । (३) सर्वतो भद्रा-इसमें बावीशम (दस उपवास) का तप करे। इसमें दस
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