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जैन-रत्न
खट्टा बना हुआ कोद्रव और कूरका धान्य तथा दक्षिणामें खोटा रुपया तुझे मिलेंगे। " गोशालकको दिनभर भटकनेपर भी शामको वही मिला । इसलिए गोशालकने स्थिर किया कि जो भविष्य होता है वही होता है।+
गोशालक रातको आया; मगर महावीर वहाँ न मिले । इस लिये वह अपनी चीजें ब्राह्मणोंको दे, सिर मुंडा कोल्लाक गाँवमें गया ।वहाँ भगवानने गोशालकको शिष्यकी तरह स्वीकार किया।
महावीर स्वामीने कोल्लाकसे स्वर्णखलको विहार किया। रस्तेमें कई गवाल एक हाँडीमें खीर बना रहे थे । गोशालकने कहा:-"प्रभो ! आइए हम भी खीरका भोजन करें ।" सिद्धार्थ बोला:-" हाँडी फूट जायगी और खीर नहीं बनेगी।" ऐसा ही हुआ । गोशालक विशेष नियतिवादी बना । ___ स्वर्णखलसे विहारकर प्रभु ब्राह्मण गाँव गये । वहाँ नंद
और उपनंद नामके दो भाइयोंके मुहल्ले थे। प्रभु नंदके यहाँ छट्टका पारणा करने गये। नंदने दही और भातसे प्रभुको प्रतिलाभित किया । गोशालक उपनंदके घर गया । उपनंदके कहनेसे दासी उसको बासी भात देने लगी । गोशालकने लेनेसे इन्कार किया । इसलिए उपनंदके कहनेसे दासीने वह भात गोशालकके सिर पर डाल दिया। गोशालकने शाप दिया:___ + विशेषावश्यक, भगवती सूत्र और कल्पसूत्रमें इस घटनाका उल्लेख नहीं है । केवल त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्रमें ही है।
१ कल्पसूत्रमें लिखा है कि, भगवान कुछ न बोले; परन्तु भगवती सूत्र और त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्रमें गोशालकको शिष्य स्वीकारना लिखा है।
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