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२४ श्री महावीर स्वामी- चरित
कुमार गाँवसे विहारकर महावीर चोराक गाँवमें आये । वहाँ कायोत्सर्ग करके रहे । सिपाही फिरते हुए आये और उन्हें किसी राजाके जासूस समझकर पकड़ा और पूछा:- “ तुम कौन हो ? " मौनधारी महावीर कुछ न बोले । गोशालक भी चुप रहा। इससे दोनोंको बाँधकर सिपाहियोंने उन्हें कूएमें डाला । फिर निकाला फिर डाला । इस तरह बहुतसी डुबकियाँ खिलाई । फिर सोमा व जयंतिका नामकी साध्वियोंने-जो पार्श्वनाथके शासनकी थीं- उन्हें पहचाना और छुड़ाया ।
चोरा गाँवसे विहार कर प्रभु पृष्ठचंपा नगरीमें आये और वि० सं० ५१० ( ई. सन् ५६७ ) पृष्ठचंपा में चौथा चौमासा पूर्वका चौमासा वहीं किया वहाँ चार मासक्षमण ( चार महीनेका उपवास ) प्रतिमा - आसन - से वह चौमासा
करके विविध प्रकारकी समाप्त किया।
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वहाँसे विहार कर फिरते हुए महावीर कृतमंगळ नामके शहरमें गये और वहाँ दरिद्र स्थविरोंके मुहल्लेमें, एक मंदिरके अंदर, एक कोने में कायोत्सर्ग करके रहे ।
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मेरा शाप फला ।” सिद्धार्थ बोला:- तेरा शाप नहीं फला, मुनि शुभ ध्यानसे मरे इससे देवता आये हैं । उसीका यह प्रकाश है । " कुतूहली गोशालक गया और सोते हुए शिष्योंको जगाकर उनका तिरस्कार कर आया ।
१ - आरंभी, परिग्रहधारी और स्त्रीपुत्रादिवाले पाखंडी रहते थे । वे दरिद्र स्थावर नामसे पहिचाने जाते थे। उनके मुहल्ले में किसी देवता की मूर्ति थी । उस मंदिर में प्रभु गये उस दिन उत्सव था । इसलिए सभी सपरिवार वहाँ इकट्ठे हुए और गीत-नृत्यमें रात बिताने लगे । यह देख गोशालक
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