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जैन-रत्न wmmmmmmm मकान सूना पड़ा था । लुहार बीमार होनेसे, छः महीने हुए कहीं गया हुआ था। महावीर स्वामी लोगोंकी आज्ञा लेकर लुहारके मकानमें कायोत्सर्ग करके रहे । लुहार भी उसी दिन अच्छा होकर वापिस आया। अपने मकानमें साधुको देखकर उसने अपशकुन समझा । वह घन लेकर उन्हें मारने दौड़ा। इन्द्रने अपनी शक्तिसे वह धन उसीके सिरपर डाला और वह वहीं मर गया।
विशालीसे विहार कर प्रभु ग्रामक गाँव आये और गाँवके बाहर उद्यानमें बिभेलिक नामक यक्षके मंदिरमें कायोत्सर्ग करके रहे । यक्षको पूर्व भवमें सम्यक्त्वका स्पर्श हुआ था इसलिए उसने प्रभुकी पूजा की ।
ग्रामक गाँवसे विहार कर प्रभु शालिशीर्ष नामक गाँवमें आये। वहाँ उद्यानमें प्रतिमा धरकर रहे । कटपूतना नामकी वाण व्यंतरी ने रातभर प्रभपर उपसर्ग किये । शांतिसे उपसर्ग सहन कर प्रभुने लोकावधि नामका अवधिज्ञान प्राप्त किया। और नग्न है तो भी उसे छोड़ना नहीं चाहिए । संभव है, वह कोई जासूस हो ।" फिर वे झाड़से उतरकर आये और एक एक कर उसपर सवारी करने लगे। आखिर वह थककर गिर पड़ा तब चोर उसे छोड़कर चले गये । गोशालक महावीरको छोड़नेके लिए पश्चात्ताप करता हुआ छः महीनेके बाद पुनः उनसे जाकर भद्रिकापुरीमें मिला।
१-कटपूतनाका जीव महावीरका जीव जब त्रिपृष्ठ वासुदेव था तब उनकी विजयवती नामकी रानी था । त्रिपृष्ठसे उसे उचित आदर नहीं मिलता था। इससे वह क्रोध करके मरी थी । अनेक भव भटकनेके बाद मनुष्य भवमें आई और वहाँ बालतप कर वाणव्यंतरी हुई। महावीरको देख, पूर्वभवका
वैर याद कर उसने महावीरपर उपसर्ग किये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com