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जैन-रत्न
गाँवके लोग सवेरेही मंदिरमें आये । उन्होंने महावीर स्वामीको सुरक्षित और पूजित देखकर हर्षनाद किया । गाँवके लोगोंमें उत्पल नामका निमित्त ज्ञानी भी था । उसने महावीर स्वामीको, जो स्वम आये थे उनका फल, बगैर ही पूछे कहाँ। फिर सभी महावीर स्वामीके धैर्य व तपकी तारीफ करते हुए अपने अपने घर गये ।
१-स्वप्न और उनके फल इस प्रकार हैं(१) पहले स्वप्नमें ताइवृक्षके समान पिशाचको मारा; इसका यह अभिप्राय है कि आप मोहका नाश करेंगे । (२) दूसरे स्वममें सफेद पक्षी देखा; इससे आप शुक्ल ध्यानमें लीन होंगे । (३) तीसरे स्वप्नमें आपने आपकी सेवा करता हुआ कोकिल देखा; इससे आप द्वादशांगीका उपदेश देंगे । (४) चौथे स्वमनें आपने गायोंका समूह देखा; जिससे आपके साधु, साध्वी और श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ होगा । (५) पाँचवें स्वममें आप समुद्र तैर गये; इसका मतलब यह है कि आप संसार-सागरको तैरेंगे । (६) छठे स्वममें उगता सूर्य देखा; इससे थोड़े ही समयमें आपको केवलज्ञान प्राप्त होगा। (७) सातवें स्वपमें मानुषोत्तर पर्वतको आंतोंसे लिपटा हुआ देखा; इससे आपकी कीर्ति दिग्दिगांतमें फैलेगी। (८) आठवें स्वममें मेरु पर्वतके शिखरपर चढ़े, इससे आप समवशरणके अंदर सिंहासनपर बैठकर धर्मोपदेश देंगे। (९) नवे स्वप्नमें पद्म सरोवर देखा; इससे सारे देवता आपकी सेवा करेंग। (१०) दसवें स्वनमें फूलोंकी दो मालाएँ देखी; इसका मतलब निमित्तज्ञानी न समझ सका इसलिए महावीर स्वामीने खुद बताया कि,मैं साधु और गृहस्थका-ऐसे दो तरहका-धर्म बताऊँगा।
[नोट-स्वप्नोंका क्रम कल्पसूत्रके अनुसार दिया है। त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्रमें दसवाँ स्वम चौथा है और नवाँ स्वम छठा है । ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com