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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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करनेके लिए उसी तरफसे जाना स्थिर किया । प्रभु जाकर चंडकौशिकके आश्रममें रहे । आश्रमके आसपासका सारा भूमिभाग भयंकर हो गया था । कहीं न पशुओंका संचार था न पक्षियोंकी उड्डान । वृक्ष और लताएँ सूख गये थे। जलस्रोत बहते बंद हो गये थे और भूमि कंटकाकीर्ण हो गई थी। ऐसी भयावनी जगहमें महावीर ध्यानस्थ हो कर रहे ।
सर्पको महावीरका आना मालूम हुआ। उसने प्रभुके सामने जाकर बिजलीके समान तेजवाली दृष्टि डाली, मगर जैसे मिट्टीमें पड़कर बिजली निकम्मी हो जाती है वैसे ही उसकी विष-दृष्टि निकम्मी हो गई । सर्पके हृदयमें आघात लगा । वह सोचने लगा, आज ऐसा यह कौन आया है कि जिसने मेरे प्राणहारी दृष्टि विषके प्रभावको निरर्थक कर दिया है । अच्छा, देखता हूँ कि मेरे काटनेपर यह कैसे बचता है ! सर्पने जोरसे महावीरके पैरोंमें काटा, फिर यह सोचकर वह दर हट गया कि यह हृष्ट पुष्ट देह, जहरका असर होनेपर कहीं मुझीपर न आ पड़े ! महावीर स्वामीके पैरसे बूदें निकलीं। आश्चर्य था फल, पत्र, पुष्प आदि लेने नहीं देता था। इससे सभी तापस नाराज होकर वहाँसे चल गये । एक दिन वह कहीं गया हुआ था तब कुछ राजकुमार श्वेतांबी नगरीसे आकर वनके फल, पुष्पादि तोड़ने लगे । वापिस आकर उसने इन लोगोंको देखा और वह कुल्हाड़ी लेकर उन्हें मारने दौड़ा । रस्ते, पैर फिसलकर एक खड्डेमें गिग, उसके हाथकी कुल्हाड़ी उसके सिरपर पड़ी । सिर फूट गया और मरकर वहीं दृष्टि विष सर्प हुआ। उधरसे जो कोई जाता वह उसकी दृष्टिके विषसे मर जाता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com