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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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मांढा खो गया था ?" इन्द्रशर्माने जवाब दिया:-" हाँ।" सिद्धार्थने कहाः-" उस मांढेको अच्छंदक मारकर खा गया है और उसकी हड्डियाँ बोरड़ीके झाड़से दक्षिणमें थोड़ी दूरपर गाड़ दी हैं। जाओ देख लो।" कई लोग दौड़े गये । उन्होंने खड्डा खोदकर देखा और वापिस आकर कहा:-" वहाँ हड्डियाँ हैं।" सिद्धार्थ बोला:-" उस पाखंडीके दुश्चरित्रकी एक बात और है; मगर मैं वह बात न कहूँगा।" लोगोंके बहुत आग्रह करने पर सिद्धार्थ बोला:-"अपने मुँहसे वह बात मैं न कहूँगा; परंतु अगर तुम जानना ही चाहते हो तो उसकी औरतसे पूछो।"
कुतूहली लोग अच्छंदकके घर गये। अच्छंदक अपनी स्त्रीको दुःख दिया करता था। इससे वह नाराज थी और उस दिन तो अच्छंदक उसे पीट कर गया था, इससे और भी अधिक नाराज हो रही थी । इसलिए लोगोंके, पूछने पर उसने कहा:-" उस कर्म-चांडालका नाम ही कौन लेता है ! वह पापी अपनी बहिनके साथ भोग करता है। मेरी तरफ तो कभी वह देखता भी नहीं है। " लोग अच्छंदकको बुरा भला कहते हुए अपने घर गये । सारे गाँवमें अच्छंदक पापीके नामसे प्रसिद्ध हुआ । गाँवमेंसे उसे भिक्षा मिलना भी बंद हो गया।
फिर अच्छंदक एकांतमें वीर प्रभुके पास गया और दीन होकर बोला:" हे भगवन् ! आप यहाँसे कहीं दूसरी जगह जाइए । क्योंकि जो पूज्य होते हैं वे तो सभी जगह पुजते हैं, और मैं तो यही प्रसिद्ध हूँ। और जगह तो कोई मेरा नाम भी नहीं जानता । सियारका जोर उसकी गुफाहीमें होता है । हे नाथ ! मैंने अजानमें भी जो कुछ अविनय किया था उसका फल मुझे यहीं मिल गया है । इसलिए अब आप मुझपर कृपा कीजिए।" उसके ऐसे दीन वचन सुनकर अप्रीतिवाले स्थानका त्याग करनेका आभग्रहवाले प्रभु वहाँसे उत्तर चावाल नामके गाँवकी तरफ विहार कर गये।"
[नोट-इस घटनाको पढ़कर खयाल होता है कि अंध भक्तिके वश होकर भक्त लोग ऐसी बातें भी कर बैठते हैं जिनसे अपने आराध्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com