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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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थी। नौका डू डूबूं हो रही थी, उस समय कंबल और संबळे नामके दो देवोंने अरिहंत पर होते उपसर्गको देखकर नौकाको सुरक्षित नदोके तीरपर पहुँचा दिया और धर्मका पालन कर प्रसन्नता अनुभव की।
१-मथुरामें जिनदास नामका एक सेठ रहता था। उसके साधुदासी नामकी स्त्री थी। उन्होंने परिग्रह-परिमाणका व्रत लिया था। उसमें ढोर पालनेका भी पच्चखाण था। इसलिए वे गाय भैंस नहीं पाल सकते थे। दूध एक अहरिणके यहाँसे मोल लेना पड़ता था। अहीरण नियमित अच्छा दूध देती थी । सेठानी उससे बहुत स्नेह रखती थी । और अक्सर उसको वस्त्रादि दिया करती थी। एक बार अहीरनके यहाँ विवाहका अवसर आया । नियमोंके कारण जिनदत्त और साधुदासी न जा सके; परंतु विवाहके लिए सामान जो चाहिए सो दिया । इस उपकारका बदला
चुकानके लिए अहीर अहीरन उनके यहाँ बैलोंकी एक सुंदर जोड़ी, सेठ सेठानीकी इच्छा न होते हुए भी, बाँध गये । बैलोंका नाम कंबल और शंबल था । सेठने उन्हें अपने बालकोंकी तरह रक्खा । उनसे कभी कोई काम न लिया।
एक बार शहरमें भंडरिवण नामके किसी यक्षका मेला था । उसमें लोग अक्सर पशुओंको दौड़ानेकी क्रीडा किया करते थे । जिनदासका एक मित्र उस दिन चुपचाप बल और शंबलको खोल ले गया । बेचारे बैल कभी जुते नहीं थे, दौड़े नहीं थे। उस दिन खूब जुते और दौड़े इससे उनकी हड्डयाँ ढीली हो गई । मित्र बैलाको चुप चाप वापिस बाँध गया वे घर आकर पड़ रहे । जिनदास घर आया । उसने बैलोंकी खराब हालत देखी । उसने बैलोंको खिलाना पिलाना चाहा । मगर उनने कुछ न खाया पिया। पीछेसे उसे असली हाल मालूम हुआ । उसे बड़ा रंज हुआ। उसने बैलोंको पञ्चखाण कराया और उनके जीवनकी अंतिम घड़ीतक सेठ उनको, पास बैठकर, नवकार मंत्र सुनाता रहा। इसके प्रभावसे वे मरकर नागकुमार नामके देव हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com