________________
३०६
जैन-रत्न ~~rnwwwmmam इक्ष्वाकु वंशके सिद्धार्थ नामक गंजा राज्य करते हैं। उनकी राणी वसिष्ठ गोत्रकी त्रिशला गर्भवती हैं। उनके गर्भ में कन्या है। उसे ले जाकर ब्राह्मणकुंडकी देवानंदा नामा ब्राह्मणांके गर्भमें रखना और देवानंदाके गर्भको लाकर त्रिशला माताके गर्भमें रखना।"
नैगमेषी देवने इन्द्रकी आज्ञाका पालन किया । उसने जब देवानंदाका गर्भ हरण किया तब देवानंदाने चौदहों महा स्वप्न अपने मुखसे निकलते देखे । वह सहसा उठ बैठी तो उसे मालम हुआ कि, उसका गर्भस्थ बालक किसीने हर लिया है । वह
१-कल्पसूत्र और विशेषावश्यकमें सिद्धार्थको ज्ञातकुलका क्षत्रिय लिखा है, राजा नहीं । “क्षत्रियकुंड गाँवमें सिद्धार्थ नामका क्षत्रिय है। उसकी भार्या त्रिशलाकी कोखमें भगवानको ले जा ।" (आगमोदय समितिका विशेषावश्यक भा. १ ला पेज ५९१) “ऋषभदेवके वंशमें जन्मे हुए ज्ञात नामक क्षत्रिय विशेषोंके मध्यमें जन्मे हुए काश्यपगोत्रके सिद्धार्थ नामक क्षत्रियकी भार्या वसिष्ठ गोत्रकी त्रिशला नामक क्षत्राणीकी कोखमें रखनेका निश्चय किया ( कल्पसूत्र सुख बोधिका पेज ८३) इतिहासज्ञोंका मत है कि,-क्षत्रियकुंड वैशालीका एक परा (Subarban) था । वैशालीमें गणराज्य था । सिद्धार्थ क्षत्रियकुंडकी तरफसे प्रतिनिधि और क्षत्रियकुंडवासियोंके नेता थे । ये ज्ञात कुलके थे । आवश्यक चूर्णी में 'ऋषभदेवके अपने ही लोगोंको ज्ञात बताया है। ज्ञातोंका कुल ज्ञातकुल हुआ और उनका वंश ज्ञातवंश कहलाया था। इक्ष्वाकुवंश भी ऋषभदेवहीका है । इससे जान पड़ता है कि ज्ञातवंश और इक्ष्वाकुवंश एक ही वंशके दो नाम हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com