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जैन-रत्न
अनेक वर्षों तक न्याय पूर्वक राज्यकर प्रियमित्रने पोट्टिल नामके आचार्यसे दीक्षा ली और तपकर वह शुक्रदेवलोकमें सर्वार्थ नामक विमानमें देवता हुआ। महाशुक्र देवलोकसे चयकर भरतखंडके छत्रा नामक नगरमें
जितशत्रु राजाकी भद्रा नामा राणीके राजा नंदनका भव गर्भसे मरीचिका जीव जन्मा । नाम
नंदन रक्खा गया। राजा जितशत्रुके दीक्षा लेनेपर नंदन राजसिंहा सनपर बैठा । कई बरसों तक राज्यकर जब चौबीस लाख बरसकी आयु हुई तब उसने पोट्टिलाचार्यसे दीक्षा ली और बीस स्थानककी आराधना कर तीर्थकर नाम कर्म बाँधा। अंतमें नंदन मुनि आयुष्यके अंतमें अनशन ग्रहणकर पाणत
ना नामक देवलोकमें पुष्पोत्तर विमानमें प्राणत नाम प्राणत नामक देवलोकमें
दे व हुए। .. जबूंद्वीपके भरतक्षेत्रके मगध प्रदेशमें ब्राह्मण कुंड नामका
एक ब्राह्मणोंका गाँव था। उसमें कुडाभगवान महावीरका भव लस कुलका ऋषभदत्त नामक ब्राह्मण
रहता था । उसके देवानंदा नामकी भार्या थी। वह जालंधर कुलमें जन्मी थी । उसको अषाढ सुदि ६ के दिन चंद्रमा जब हस्तोत्तर ( उत्तराषाढा ) नक्षत्रमें आया था तब चौदह महास्वम आये और मरीचिका जीव दसर्वे देवलोकसे चयकर देवानंदाकी कोखमें आया। सेवेरे ही देवानंदाने
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