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जैन - रत्न
दूतकी ऐसी दुर्गति हुई सुनकर प्रजापतिको दुःख हुआ । उसने आदमी भेजकर दूतको वापिस बुलाया, लड़केकी कृतिके लिए दुःख प्रदर्शित किया और उसे अनेक तरह से इनाम इकराम देकर सन्तुष्ट किया । और इस घटना की खबर अश्वग्रीवको न देनेका उससे वादा कराया ।
अपमानित दूत अश्वग्रीव के पास पहुँचा । उसके पहले ही उसके साथियोंने जाकर पोतनपुरकी घटनाके समाचार सुना दिये थे | अपना वादा पूरा होनेका कोई उपाय न देख दूतने भी सारा वृत्तान्त सुना दिया । सुनकर अश्वग्रीवको क्रोध हो आया; परन्तु प्रजापतिकी क्षमायाचनाके समाचार सुनकर कुछ शान्ति भी हुई। उसने विचारा कि नैमेतिककी एक बात तो सच्ची हुई है । अब दूसरी बातकी सत्यता जानने के लिए भी उपाय करना चाहिए | उसने दूत भेजकर प्रजापतिको शालीके खेतकी रक्षा के लिए जानेका आदेश दिया ।
प्रजापतिने अश्वग्रीवकी आज्ञा दोनों कुमारोंको सुना दी । त्रिपृष्ठ यह सुनकर सिंहका वध करने जानेके लिए तैयार हो गया । दोनों भाइयोंने तुंगगिरिके खेतोंके पास जाकर डेरे डाले ।
लोगोंके द्वारा सिंहकी अतुल शक्तिका पता चला। बड़े बड़े बलवानोंको उसने पलक मारते मार गिराया था । अच्छे अच्छे बहादुर उसके ग्रास बन गये थे। ऐसे विक्राल सिंहको मारना बड़ा कठिन कार्य था । परन्तु त्रिपृष्ठ एवं अचलकुमारने उसको उसकी गुफामें जा ललकारा । सिंहने टेढी निगाह करके देखा और दो जवानों को अपनी गुफाके सामने खड़ा देखकर वापिस बेपरवा
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