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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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हीसे आँखें बंद कर ली । त्रिपृष्ठके नौकरोने चारों तरफसे चिल्लाना और पत्थर फैंकना आरंभ किया । यह बात शेरको असह्य हुई । उसने उठकर गर्जना की । उसकी गर्जना सुनकर त्रिपृष्ठके कई नौकर भयसे गिर पड़े, पक्षी पेड़ोंसे नीचे आ रहे और पशु खाना और चलना फिरना छोड़ ताकने लगे । यह सब हुआ; परंतु दो जवान तो उसकी गुफाके सामने कुछ दूर स्थिर खड़े ही रहे।
शेरने गुफासे बाहर निकलकर खड़े हुए जवानोंपर छलांग मारी । त्रिपृष्ठने लपककर शेरके जबड़े पकड़े और उसे चीर दिया। दो टुकड़े होने पर भी शेरका दम न निकला । वह तड़प रहा था और यह सोचकर दुःखी था कि आज इस छोकरेने मुझे मार डाला । हजारों बड़े बड़े शस्त्रधारियोंको मैंने पलक मारवे यमधाम पहुँचाया था उसी मुझको, इस छोकरेने क्षणभरमें चीरकर फेंक दिया । त्रिपृष्ठके सारथीने-जो महावीरके भवमें गौतम गणधर हुए थे-कहाः—" हे सिंह, जैसे तू पशुओंमें सिंह है वैसे ही ये त्रिपृष्ठ मनुष्योंमें सिंह हैं और वासुदेव हैं । तेरा सद्भाग्य है कि, तू इनके हाथसे मारा गया है।" सिंहको यह सुनकर संतोष हुआ और वह मरकर चौथे नरकमें गया।
त्रिपृष्ठने शेरका चमड़ा निकलवाया और उसे लेकर वह राजधानीको चला । अश्वग्रीवको यह खबर मिली । उसको निश्चय हो गया कि मेरी मौत आ गई है । उसने शंकामें जीवन बिताना ठीक न समझा और प्रजापतिको कहलाया कि.. तुम्हारे लड़कोंने जो बहादुरी की उससे मैं बहुत खुश हूँ । उन्हें शेरके चमड़ेके साथ मेरे पास भेज दो । मैं उनको इनाम दूंगा।"
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