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२३ श्री पार्श्वनाथ-चरित
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हैं ? और इस वनमें आनेका आपने कैसे कष्ट किया है ?" सुवर्णबाहु बड़े संकोचमें पड़े । वे कैसे कहते कि, मैं ही सुवर्णबाहु हूँ और अपनेको दूसरा कोई बताकर मिथ्या बोलनेका दोष भी कैसे करते ? उन्हें चुप देखकर तीसरी बोली:-" बहिन ! ये तो खुद सुवर्णबाहु राजा हैं । क्या तुमने इनको यह कहते नहीं सुना कि,-" जब तक सुवर्णबाह मौजूद है तबतक किसकी मजाल है सो तुम्हें दुःख दे?" फिर राजासे पूछा:-" महाराज ! हमारी असभ्यता क्षमा कीजिए और कहिए आप ही महाराज सुवर्णबाहु हैं न ?" राजाने मुस्कुरा दिया। बालाओंको निश्चय हो गया कि ये ही महाराज सुवर्णबाहु हैं।
राजाने सबसे अधिक सुंदरी बालाकी तरफ संकेत करके पूछा:-" ये बाला कौन हैं ? ये तापसकन्या तो नहीं मालूम होतीं । इनका शरीर पौदोंको जलसिंचन करनेके कामका नहीं है । कहो ये कौन हैं ?" ____एक बाला दीर्घ निश्वास डालकर बोली:-"ये रत्नपुरके राजा खेचरेन्द्रकी कन्या हैं। इनका नाम पद्मा है और इनकी माताका नाम रत्नावली है । जब खेचरेंद्रका देहांत हो गया तब उनके पुत्र राज्यके लिए आपसमें लड़ने लगे । इससे सारे देशमें बलवा मच गया । रत्नावली अपनी कन्याको, लेकर अपने कुछ विश्वस्त मनुष्यों के साथ वहाँसे निकल भागी और यहाँ, तापसोंके कुलपति गालव मुनिके आश्रममें, आ रहीं। थाश्रममें रहनेवाले सभी स्त्रीपुरुषों को काम करना पड़ता है।
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