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२३ श्री पार्श्वनाथ-चरित
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इस घटनासे कठकी प्रतिष्ठाको धक्का पहुँचा । इससे वह पाश्वर्कुमारपर मन ही मन नाराज हुआ और अधिक घोर तप करने लगा । मगर अज्ञान तपके कारण उसे सम्यक् ज्ञान न हुआ और अंतमें मरकर भुवनवासी देवोंकी मेघकुमार निकायमें मेघमाली नामका देव हुआ। ___ एक दिन लोकांतिक देवाने आकर विनती की:- "हे प्रभो! तीर्थ प्रवर्ताइये ।" प्रभुने अपने भोगावली कोंको पूरे हुए जान वर्षी दान दिया । वर्षीदान समाप्त हुआ तब इन्द्रादि देवोंने
और अश्वसेन आदि राजाओंने पार्श्वकुमारका दीक्षाभिषेक किया। फिर देव और मनुष्य सभी जिसे उठाकर ले जा सकें ऐसी विशाल नामकी पालकी ( शिबिका ) में बैठकर प्रभु आश्रमपद नामक उद्यानमें आये । वहाँ सारे वस्त्राभूषणोंको त्याग, पंचमुष्टी लोचकर, प्रभुने पोस वदि ग्यारसके दिन चन्द्र जब अनुराधा नक्षत्रमें था दीक्षा ली । तीन सौ राजाओंने भी उनके साथ दीक्षा ली। दीक्षा लेते ही उन्हें मनःपर्यय ज्ञान उत्पन्न हुआ। सभी तीर्थकरोंको दीक्षा लेते ही मनःप्रयेय ज्ञान उत्पन्न होता है । इन्द्रादि देवोंने दीक्षाकल्याणक मनाया । __दूसरे दिन कोपट गाँवमें धन्य नामक गृहस्थके घर पायसान्न ( खीर ) से पारणा किया। देवताओंने उसके यहाँ वसुधारादि पंच दिव्य प्रकट किये।
प्रभु अनेक गाँवों और शहरोंमें विचरण करते हुए किसी शहरकी तरफ आ रहे थे कि जंगलहीमें सूर्यास्त हो गया । वहाँ पासहीमें कुछ तापसोंके घर भी थे। प्रभु एक कूएके पास वट वृक्षके नीचे कायोत्सर्ग कर ध्यानमें मग्न हो गये।
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