________________
२८८
जैन-रत्न commmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm~~ जंबूद्वीपके पश्चिम विदेह क्षेत्रमें महावन नामका प्रांत था ।
उसकी जयंती नामकी नगरीमें शत्रुमर्दन १ प्रथम भव नामका राजा राज्य करता था । उसके
राज्यमें पृथ्वी प्रतिष्टान नामके गाँवमें नयसार नामका स्वामीभक्त पटेल (गामेती) था । यद्यपि उसको साधु संगतिका लाभ नहीं मिला था। तथापि वह सदाचारी और गुणग्राही था। एक बार वह राज्यके कारखानोंके लिए लक्कड़ भिजवानेका हुक्म पाकर जंगलमें गया । __ भयानक जंगलमें जाकर उसने लक्कड़ कटवाये। जब दुपहरका वक्त हुआ तब सभी मजदूर अपने अपने डिब्बे खोलकर खाने लगे । नयसारने सोचा,-गाँवमें मैं हमेशा अभ्यागतको खिलाकर खाता हूँ। आज मेरा मन्द भाग्य है कि कोई अभ्यागत नहीं । देखू अगर कोई इधरसे मुसाफिर जाता हो तो उसे ही खिलाकर फिर खाऊँ। वह इधर उधर किसी मुसाफिरकी तलाशमें फिरता रहा; परन्तु कोई मुसाफिर बहुत देर गुजर जानेपर भी उधरसे न निकला । वह दुर्भाग्यका विचार करता हुआ उस जगह लौटा जहाँ सब भोजन करने बैठे थे। ___ ज्याही वह भोजन परोसकर खाना चाहता था त्योंही उसे सामने कुछ मुनि आते हुए दिखाई दिये । समयसार, उठाया हुआ नवाला वापिस एक तरफ रखकर, उठा और मुनियोंके पास जाकर हाथ जोड़ बोला:-"मेरा सद्भाग्य है कि, आपके इस भयानक जंगलमें, दशर्न हो गये । कृपानाथ ! भोजन तैयार
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com