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२४ श्री महावीर स्वामी - चरित
है आइये और कुछ खाकर मुझे उपकृत कीजिए । क्षुधापीडित मुनियोंने शुद्ध आहार जानकर ग्रहण किया । जब मुनि आहार कर चुके तब समयसारने पूछा:- “महाराज ! इस भयानक जंगलमें आप कैसे आ चढ़े ? भयानक पशुओं से भरे हुए इस जंगलमें शस्त्रधारी भी आते हिचकिचाते हैं । आपने यह साहस कैसे किया ? " मुनि बोले: - " हम बनजारे के साथ मुसाफिरी कर रहे थे । रस्तेमें एक गाँवमें हम आहारपानी लेने गये और बनजारेकी बालदसे छूट गये । चलते हुए रस्ता भूलकर इस जंगलमें आ चढ़े हैं। "
" चलिए मैं गाँवका रस्ता बता दूँ। " कह समयसार साधुओंको रस्ता बताने गया । जब वे रस्तेपर पहुँच गये तब एक वृक्षके नीचे बैठकर मुनियोंने समयसारको धर्म सुनाया और समयसार धर्म ग्रहण कर सम्यक्त्वी बना । फिर साधु अपने रस्ते गये और समयसार भी लक्कड़ राजधानीमें रवाना कर अपने घर गया ।
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बहुत समय तक धम पाल अंतमें मरकर समयसारका जीव सौधर्मदेवलोकमें पल्योपमकी आयुवाला देवता हुआ ।
इसी भरत क्षेत्रमें विनीता नामकी नगरीमें भगवान ऋषभदेवके पुत्र भरत चक्रवर्ती राज्य करते थे । समयमरीचिका भव सारका जीव देवलोक से उन्हीं के घर पुत्ररूपमें उत्पन्न हुआ । अपने सूर्यके समान तेजसे वह चारों तरफ मरीचि ( किरणें ) फैलाता था, इससे उसका नाम मरीचि रक्खा मया । क्रमशः मशीच जवान हुआ ।
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