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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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विश्वभूतिने उसी वक्त संभूति मुनिके पास जाकर दीक्षा ले ली। राजा विश्वनंदीको यह खबर मिली । उसे अपनी कृतिपर दुःख हुआ। उसने विश्वभूतिके पास जाकर क्षमा माँगी
और उससे राज लेनेका आग्रह किया, परन्तु त्यागी विश्वभूतिने यह बात स्वीकार न की। ___ एक बार एकाकी विहार करते हुए विश्वभूति मुनि मथुरा आये । विशाखनंदी भी उस समय मथुरा आया था और शहरके बाहर उसका पड़ाव था । विश्वभूति मुनि एक महीनेके उपवासके बाद गोचरी लेने शहरमें जा रहे थे । जब वे विशाखनंदीके डेरेके पास पहुंचे तो नौकरोंने और उसने विश्वभूतिको पहचाना । विशाखनंदी मुनिको देख यह सोच उनपर गुस्से हुआ कि, इसीके कारणसे पिताजीने मेरा तिरस्कार किया था। इतने हीमें एक गाय दौड़ती हुई आई और विश्वभूति मुनिसे टकराई। मुनि गिर पड़े । विशाखनंदी और उसके नौकर हँस पड़े। वह मुनिको उद्देशकर बोला:-" अरे ! आज तेरा झाड़के फल गिरानेका बल कहाँ गया ?" इस तिरस्कारसे मुनि गुस्से हुए। उन्होंने, उठकर, गायको सींग पकड़कर उठाया, घुमाया और आकाशमें उछाल दिया। इस पराक्रमको देख विशाखनंदी और उसके नौकर लज्जित हो गये । विश्वभूति मुनिने यह नियाणा किया कि, मेरे तपके प्रभावसे भवांतरमें मैं बहुत बल शाली होऊँ और मेरा अपमान करनेवाले विशाखनंदीको दंड हूँ।
मरीचिका जीव विश्वभूति मरकर महाशुक्र देवलोकमें उत्कृष्ट महाशुक्रका मव आयुवाला देवता हुआ।
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