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जैन - रत्न
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रखते हैं; परन्तु राजीमती तुम्हें सबसे ज्यादा चाहती इसका क्या कारण है ? " प्रभुने धन और धनवतीके भवसें Harsh नवों भवकी कथा सुनाई । उसे सुनकर सबका संदेह जाता रहा । प्रभुसे वरदत्त आदि अनेक पुरुषोंने और स्त्रियोंने भी दीक्षा ली और अनेक पुरुष स्त्रियोंने श्रावक श्राविका व्रत लिए । इस तरह चतुर्विध संघकी स्थापना कर प्रभु वहाँ से विहार कर गये ।
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भगवान नेमिनाथ बिहार करते हुए भद्दिलपुर नगरमें पहुँचे । वहाँ देवकीजीके छः पुत्र-जो सुलसाके घर बड़े हुए थे-रहते थे । उन्होंने धर्मोपदेश सुनकर दीक्षा ली । एक बार वे सभी द्वारका गये । वहाँ गोचरीके लिए फिरते हुए दो साधु देवकीजीके घर पहुँचे । उन्हें देखकर देवकीजी बहुत प्रसन्न और प्रासुक आहार पानी दिये ।
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उनके जाने बाद दूसरे दो साधु आये । वैसा ही रूप रंग देखकर देवकीजीको आश्चर्य हुआ। फिर सोचा, शायद अधिक साधु होनेसे और आहारपानीकी जरूरत होगी इसलिए फिरसे ये आये हैं । देवकीजीने उन्हें आहारपानी दिया । थोड़ी देर के बाद और दो साधु आये। वही रूप, वही रंग, वही चाल, वही आवाज | देवकीजीसे न रहा गया । उनने पूछा:- " मुनिराज! आप क्या रस्ता भूल गये हैं कि बार बार यहीं आते हैं ?"
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उन्होंने कहा :- " हम तो पहली ही बार यहाँ आये हैं । देवकीजीको और भी आश्चर्य हुआ । वे बोलीं :- " तो क्या मुझे भ्रम हुआ है ? नहीं भ्रम नहीं हुआ । वे भी बिल्कुल तुम्हारे ही जैसे
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