________________
२२ श्री नेमिनाथ-चरित
२५१
-
उन्हें खाया और साथ ही मींडलकी फाकी भी ले ली । फिर बोली :- " एक परात मँगवाओ । " परात आई । राजीमतीने जो कुछ खाया पिया था सब वमन कर दिया। फिर बोली:“ रथनेमि ! तुम इसे पी जाओ ।" वह क्रुद्ध होकर बोला :" तुमने क्या मुझे कुत्ता समझा है ?" राजीमती हँसी और बोली:- " तुम्हारी लालसा तो ऐसी ही मालूम होती है । मुझे नेमिनाथने वमन कर दिया है । तुम मेरी लालसा कर रहे हो । यह लालसा वमित पदार्थ खानेहीकी तो है । है रथनेमि ! तुमने मेरा जवाब सुन लिया | बोलो अब तुम्हारी क्या इच्छा हैं ? "
रथनेमिने लज्जित होकर सिर झुका लिया । राजीमती रथनेमिको अनेक तरहसे उपदेश दे अपने घर चली गई और फिर कभी वह रथनेमिके घर न गई । वह रात दिन धर्मध्यानमें अपना समय बिताने लगी ।
नेमिनाथ प्रभु चोपन दिन इधर उधर विहार कर पुनः - सहसाम्र वनमें आये । वहाँ उन्होंने अतस वृक्ष के नीचे तेला करके काउसग किया। उन्हें आसोज वदि ३० की रातको चित्रा नक्षत्रमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । इन्द्रादि देवोंने आकर ज्ञान -- कल्याणक मनानेके लिए समवशरणकी रचना की ।
ये समाचार श्रीकृष्ण, समुद्रविजय वगैराको भी मिले । वे सभी धूम धामके साथ नेमिनाथ भगवानको वाँदने आये । और वंदनाकर समवशरणमें बैठे । भगवानने देशना दी । देशना सुनकर अनेकोंने यथायोग्य नियम लिये |
श्रीकृष्ण ने पूछा :- " प्रभो ! वैसे तो सभी तुमपर स्नेह
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com