________________
२६४
जैन-रत्न
वह उसी तरफ झपटा । कइयोंको पैरों तले रौंदा और कइयोंको मूंडमें पकड़कर फेंक दिया। लोग इधर उधर अपने प्राण लेकर भागे । अरविंद मुनि ध्यानमें लीन खड़े रहे। हाथी उनपर झपटा; मगर उनके पास जाकर एकदम रुक गया। मुनिके तेजके सामने हाथीकी क्रूरता जाती रही । वह मुनिके चहरेकी तरफ चुपचाप देखने लगा।
मुनि काउसग्ग पारकर बोले:-" हे मरुभूति ! अपने पूर्व भवको याद कर । मुझ अरविंदको पहचान । अपने बुरे परिणामोंका फल हाथी होकर भोग रहा है । अब हत्याएँ करके क्या पापको और भी बढ़ाना चाहता है ?" मरुभूतिको मुनिके उपदेशसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया । वह मुनिसे श्रावक व्रत अंगीकार कर रहने लगा । कमठकी स्त्री वरुणा भी हथिनी दुई थी। उसने भी सारी बातें सुनी और उसे भी जातिस्मरण ज्ञान हो आया । सेठके साथके अनेक मनुष्य तपका प्रभाव देखकर मुनि हो गये । संघ वहाँसे अष्टापदकी तरफ चला गया। ___ अब मरुभूति संयमसे रहने लगा । वह सूर्यके आतापसे तपा हुआ पानी पीता और पृथ्वीपर गिरे हुए सूखे पत्ते खाता । ब्रह्मचर्यसे रहता और कभी किसी प्राणीको नहीं सताता । रातदिन वह सोचता,- मैंने कैसी भूलकी कि, मनुष्यभव पाकर उसे व्यर्थ खो दिया। अगर मैंने पहले समझकर संयम धारणकर लिया होता तो यह पशुपर्याय मुझे नहीं मिलती।
संयमके कारण उसका शरीर सूख गया था। उसकी शक्ति क्षीण हो गई थी। वह ईयर्या समितिके साथ चलता था और
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com