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२३ श्री पार्श्वनाथ-चरित
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इसको कमठने अपना उपहास समझा । वह और भी अधिक खीझ गया। उसने पास पड़ा हुआ एक बड़ा पत्थर उठा लिया और मरुभूतिके सिरपर दे मारा । इसका सिर फट गया। बह पीडासे व्याकुल हो छटपटाने लगा और आर्त ध्यानमें मरा । ___ अंतमें आर्तध्यानमें मरा इससे वह पशु योनिमें जन्मा और २ दूसरा भव ( हाथी ) विध्यगिरिम यूथपति हाथी हुआ।
एक दिन पोतनपुरके राजा अरविंद अपनी छतपर बैठे हुए थे। आकाशमें घनघोर घटा छाई हुई थी। बिजली चमक रही थी । इन्द्रधनुष तना हुआ था । आकाश बड़ा सुहावना मालूम हो रहा था। उसी समय जोरकी हवा चली । मेघ छिन्न भिन्न हो गये । बिजलीकी चमक जाती रही और इन्द्रधनुषका कहीं नाम निशान भी न रहा । राजाने सोचा, जीवनकी सुख-घनघटा भी इसी तरह आयुसमाप्तिकी हवासे नष्ट हो जायगी । इसलिए जीवनसमाप्तिके पहले जितना हो सके उतना धर्म कर लेना चाहिये । राजा अरविंदने समंतभद्राचार्यके पाससे दीक्षा ले ली। ___ एक दिन अरविंद मुनि सागरदत्त सेठके साथ अष्टापदजी पर वंदना करने चले । रस्तमें उन्होंने एक सरोवरके किनारे पड़ाव डाला । सभी स्त्री पुरुष अपने अपने काममें लगे। अरविंद मुनि एक तरफ कायोत्सर्ग ध्यानमें लीन हो गये।
मरुभूति हाथी सरोवरपर आया । पानीमें खूब कल्लोलें कर वापिस चला । सरोवरके किनारे पड़ावको देखकर
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