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जैन-रत्न ~~~rammer कुरंगक रखा गया । जब वह जवान हुआ तब महान शिकारी बना।
वज्रनाभ मुनि फिरते हुए ज्वलनगिरिकी गुफामें जाकर कायोत्सर्ग करके रहे । नाना भाँतिके भयावने पशुपक्षी रातभर बोलते और उनके आसपास फिरते रहे; परन्तु मुनि स्थिर रहे
और ध्यानसे चलित न हुए। सवेरे ही जिस समय वे कायोत्सर्ग छोड़कर गुफामेंसे निकले उसी समय कुरंगक नामका भील भी धनुषबाण लेकर घरसे रवाना हुआ। उसे सामने मुनि दिखे। उन्हें देखकर भीलको बड़ा गुस्सा आया। इस भिक्षुकने सवेरे ही सवेरे मेरा शकुन बिगाड़ दिया है, यह सोचकर उसने उन्हींको सबसे पहले अपने बाणका निशाना बनाया। बाण लगते ही वे अहंत पुकारकर पृथ्वीपर गिर पड़े। सब जीवोंसे उन्होंने क्षमत क्षामणा किये और मनको सब तरहके व्यापारोसे हटाकर आत्मध्यानमें लीन कर दिया। राजर्षि वज्रनाभ शुभ ध्यान पूर्वक मरकर मध्यप्रैवेयक देव
लोकमें ललितांग नामक देव हुए । कम७ सातवाँ भव ठका जीव कुरंगक भील भी उम्रभर ( ललितांग देव ) शिकारमें जीवन बिता अशुभ ध्यानसे
मरा और रौरव नामके सातवें नरकमें नारकी हुआ। जंबूद्वीपके पूर्व विदेहमें पुराणपुर नामका नगर है । उसमें
इन्द्रके समान प्रतापी कुलिशबाहु नामकी.
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