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२३ श्री पार्श्वनाथ-चरित २६१ पुरोहित था। उसकी अनुवा नामकी पत्नीके गर्भसे कमठ और मरुभूति नामके दो पुत्र उत्पन्न हुए।
वे जब जवान हुए तब मातापिताने उनका ब्याह करवा दिया। कमठकी स्त्रीका नाम वरुणा था और मरुभूतिकी स्त्रीका नाम वसुन्धरा । वसुन्धरा दोनोंमें अधिक रूपवती थी । भाइयोंमें कमठ लंपट था और मरुभूति सदाचारी।
समयपर विश्वभूति और अनुद्धरा दोनों स्वर्गवासी हुए । कमठ. संसाररत और क्रियाशील मनुष्य था । वह राजाकी नौकरी करने लगा । संसारविमुख मरुभूति धर्मध्यानमें लीन हुआ और ब्रह्मचर्य पालन करता हुआ प्रायः पौषधशालामें रहने लगा । युवती वसुंधरा अपने यौवनको भोगविहीन जाते देख, मन ही मन दुःखी होती; परन्तु अपने पतिके धर्ममय जीवनमें विघ्न डालनेका यत्न न करती । इतना ही क्यों ? वह भी यथासाध्य अपना समय धर्मकार्योंमें बिताती । लंपट कमठको अपने भाइकी वैराग्यदशाका हाल मालूम हुआ। उसने वसुन्धरापर डोरे डालने आरंभ किये । एक दिन उसने वसुन्धराको एकांतमें पकड़ लिया। भोगकी इच्छा रखनेवाली वसुंधरा भी थोड़ा विरोध करनेके बाद उसके आधीन हो गई ! उसने अपना शील भोगेच्छाके अर्पण कर दिया। अब तो वे प्रायः विषयभोगमें लीन रहने लगे।
कमठकी स्त्री वरुणाको यह हाल मालूम हुआ । उसने दोनोंको बहुत फटकारा, परन्तु उनपर इसका कोई असर न हुआ। तब उसने यह बात अपने देवर मरुभूतिसे कही । मरु
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