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२२ श्री नेमिनाथ-चरित
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अग्निकुमार देव होगा और सारी द्वारकाको और यादवोंको जलाकर भस्म कर देगा । तुम जंगलमें अपने भाई जराकुमारके हायसे मारे जाआगे।"
बलदेवके सिद्धार्थ नामका सारथी था। उसने बलदेवसे कहा:--" स्वामिन् ! मुझसे द्वारकाका नाश न देखा जायगा। इसलिए कृपाकर मुझे दीक्षा लेनेकी अनुमति दीजिर ।" बलदेव बोले:-"सिद्धार्थ ! यद्यपि तेरा वियोग मेरे लिए दुःखदायी होगा; परन्तु मैं शुभ काममें विघ्न न डालूँगा। हाँ तपके प्रभावसे तू मरकर अगर देवता हो तो मेरी मदद करना।" उसने यह बात स्वीकार की और दीक्षा ले ली। __भगवानके इतना परिवार था वरदत्तादि ग्यारह गणधर, १८ इजार महात्मा साधु, चालीस हजार साध्वियाँ, ४ सौ चौदह पूर्वधारी, १५ सौ अवधिज्ञानी, १५ सौ वैक्रिय लब्धिवाले १५ सौ केवली, १ हजार मनःपर्ययज्ञानी, ८ सौ वादलब्धिवाले, १ लाख ६९ हजार श्रावक और ३ लाख ३९ हजार साध्वियाँ। इसी तरह गोमेध नामका यक्ष और अंबिका नामकी शासनदेवी थे।
विहार करते हुए अपना निवार्णकाल समीप जान प्रभु रैवतगिरि (गिरनार ) पर गये और वहाँ ५३६ साधुओंके साथ पादोपगमन अनशन कर आषाढ शुक्ला ८ के दिन चित्रा नक्षत्रमें मोक्ष गये । इन्द्रादि देवोंने निवार्णकल्याणक मनाया।
राजीमती आदि अनेक साध्वियाँ भी केवलज्ञान प्राप्तकर मोक्षमें गई । राजीमतीकी कुल आयु ९०१ वर्षकी थी। वे ४
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