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२२ श्री नेमिनाथ - चरित
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थे।” साधु बोलेः–“ हम छः भाई हैं। सभी एकसे रूप रंगवाले हैं और सभीने दीक्षा ले ली है । हमारे चार भाई पहले आये होंगे । इसलिए तुम्हें भ्रांति हो गई हैं । " देवकीजीने उनका हाल पूछा । उन्होंने अपना हाल सुनाया । सुनकर देवकीजीको दुःख हुआ । वे रोने लगीं, – “ हाय ! मेरे कैसे खोटे भाग हैं कि मैं अपने एक भी बच्चेका पलना न बाँध सकी । उनके बालखेलसे अपने मनको सुखी न बनासकी । इतना ही क्यों ? मैं सबको पीछे भी न पा सकी ।" साधुओंने समझायाः - " खेद करनेसे क्या फायदा है ? यह तो पूर्व भवकी करणीका फल है । पूर्व भवमें तुमने एक बाईके सात हीरे चुरा लिये थे । वह बिचारी कल्पांत करने लगी । जब वह बहुत रोई पीटी तब तुमने उसे एक हीरा वापिस दिया । इसी हेतुसे तुम्हारे सातों पुत्र तुमसे छूट गये । एक हीरा तुमने वापिस दिया था इसलिए तुम्हारा एक पुत्र तुमको पीछा मिला है। ” मुनिराज चले गये । देवकीजी अपने पूर्व भवके बुरे कर्मोंका विचार कर मन ही मन दुखी रहने लगी ।
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एक बार श्रीकृष्णने माताको उदासीका कारण पूछा । देवकीजीने उदासीका कारण बताया और कहा :- " जबतक मैं बच्चेको न खिलाऊँगी तबतक मेरा दुःख कम न होगा । " श्रीकृष्णने माताको संतोष देकर कहा :- " माता कुछ चिंता न करो । मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा । " 1
फिर श्रीकृष्णने नैगमेषी देवताकी आराधना की । देवताने प्रत्यक्ष होकर कहा :- " हे भद्र ! तुम्हारी इच्छा पूरी होगी ।
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